By: D.K Choudhary
- भूकंपीय तंरगों को सीस्मोग्राफ यंत्र से रेखांकित किया जाता है।
- गौण तरंगें द्रव्य पदार्थ में से नहीं गुजर सकतीं।
- भूकंप के उदभव स्थान को भूकंप का केंद्र कहा जाता है।
- प्राथमिक और द्वितीय तरंगें भूकंप केंद्र से धरातल तक 11 हजार किलोमीटर की दूरी तक पहुंचती हैं।
- केंद्रीय भाग पर पहुंचने पर द्वितीय तरंगे गायब हो जाती हैं।
- प्राथमिक तरंगे केंद्रीय भाग पर पहुंचने पर भी अपवर्तित रहती हैं।
- भूकंप के केंद्र से 11 हजार किलोमीटर के बाद लगभग 5 हजार किलोमीटर तक का क्षेत्र छाया क्षेत्र कहलाता है क्योंकि इस क्षेत्र तक कोई भी तरंग नहीं पहुंचती।
- भूकंप के केंद्र के ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदु को भूकंप का अधिकेंद्र कहा जाता है।
- समुद्र में भूकंप की वजह से उठने वाली लहरों को जापान में सुनामी कहा जाता है।
- सुनामी की दृष्टि से प्रशांत महासागर सबसे खरतनाक महासागर है।
- पृथ्वी के भीतर होने वाली कंपन अथवा लहर को भूकंप कहा कहाता है।
- भू-गर्भ शास्त्र की जिस शाखा के द्वारा भूकंपों का अध्ययन किया जाता है उसे सीस्मोलॉजी कहा जाता है।
- भूकंप की तीव्रता की इकाई रिक्टर है।
- सन् 1935 में अमेरीकी वैज्ञानिक चार्ल्स रिक्टर ने रिक्टर स्केल का विकास किया था।
- भूकंप में प्रकार के कम्पन होते हैं – 1. प्राथमिक तरंग 2. द्वितीय तरंग और 3. एल तरंग
- 8 किलोमीटर प्रति सेकेंड की औसत वेग से धरती के भीतर होने वाली कम्पन प्राथमिक तरंग कहलाती है।
- 4 किलोमीटर प्रति सेकेंड की औसत वेग से धरती के भीतर होने वाली कम्पन द्वितीय तरंग कहलाती है। इसे अनुप्रस्थ तरंग भी कहा जाता है।
- मुख्य रूप से धरातल तक ही सीमित रहने वाली तरंगों को एल तरंग कहा जाता है। एल तरंगों को धरातलीय तरंग तथा लंबी तरंग भी कहा जाता है।
- प्राथमिक और एल तरंगें ठोस, तरल और गैस तीनों माध्यमों से होकर गुजर सकती हैं, किन्तु द्वितीय तरंगें केवल ठोस माध्य से ही गुजर सकती हैं।