स्डटी में यह भी कहा गया है कि सरकार ने सब्सिडी देने के बजाय कृषि में निवेश बढ़ाया होता तो स्थिति बेहतर होती। सचाई यह है कि उदारीकरण की नीति अपनाए जाने के बाद से ही किसान प्राथमिकता में नहीं रहे हैं। ज्यादातर नीतियां औद्योगिक विकास को ध्यान में रखकर बनीं। विकास के नाम पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर किया गया है, जिसकी मार किसानों पर पड़ी है। बाहर से जो पूंजी आई वह उद्योग-धंधों और अन्य क्षेत्रों में ही लगी है। कृषि में निवेश नाममात्र का ही हुआ है। हालांकि यह बात कोई भी सरकार स्वीकार नहीं करती है। उसके पास कृषि क्षेत्र को लेकर बड़े-बड़े वादे और नारे रहते हैं। वह किसानों को संतुष्ट करने के लिए समय-समय पर उनके कर्ज माफ कर देती है पर कृषि क्षेत्र के लिए जिस बुनियादी बदलाव की जरूरत है, वह नहीं करती। वर्तमान सरकार भी 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा कर रही है, पर यह आसान नहीं है और इससे भी समस्या शायद ही सुलझे। अभी बिहार में एक किसान की मासिक आय औसतन 3,558 रुपये तो पश्चिम बंगाल में 3,980 रुपये है। वहीं पंजाब के एक किसान की मासिक आय 18,059 रुपये तक होती है। अगर इसे दोगुना भी कर दिया जाए, तो यह आय अन्य छोटी नौकरियों और मामूली कारोबार की तुलना में बेहद कम है। किसानों की आय कम से कम दूसरे पेशों के बराबर हो, तभी वे खेती से संतुष्ट रहेंगे। किसानों को एमएसपी मिले, इसके लिए अनुकूल खरीद नीति की जरूरत है। अब कई राज्यों में व्यवस्थित मंडियां ही नहीं हैं। वहां खरीदारी का समुचित प्रबंध किया जाए। इसके अलावा किसानों के लिए आय का दूसरा जरिया भी उपलब्ध कराना होगा।
किसान की कमाई Editorial page 12th July 2018
By: D.K Chaudhary
पिछले कुछ समय से देश में कृषि और किसानों का मुद्दा चर्चा में है। अब इस पर आम सहमति है कि देश की कृषि संकट में है, किसान बदहाल होता जा रहा है, लेकिन यह सब एकाएक नहीं हुआ है। ऑर्गनाइजेशन ऑफ इकनॉमिक कोऑपरेशन एंड डिवेलपमेंट (ओईसीडी) और इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनैशनल इकनॉमिक रिलेशंस (आईसीआरईआईआर) के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में पिछले दो दशकों से खेती लगातार घाटे का सौदा होती गई है। यानी दो दशकों में किसानों की हालत लगातार खराब होती गई है। अध्ययन में शामिल किए गए 26 देशों में भारत के अलावा यूक्रेन और वियतनाम ही हैं जिनके हालात एक जैसे हैं। अध्ययन में कहा गया है कि 2014-16 के दौरान इन तीनों देशों का कृषि राजस्व ऋणात्मक रहा है। कृषि के लाभप्रद न होने के लिए सरकारी नीति को जिम्मेदार ठहराया गया है। कहा गया है कि भारत में मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के लिए अनाज की कीमत कम रखने पर जोर दिया गया, जिससे किसानों को कम कीमत मिली। यही नहीं सरकार ने निर्यात को भी नियंत्रित किया और न्यूनतम समर्थन मूल्य भी अंतरराष्ट्रीय कीमत से कम रखा।