साख की चिंता Editorial page 23rd May 2018

By: D.K Chaudhary

चुनाव आयोग की निष्पक्षता और सफलता का सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि हिन्दुस्तान के लोकतंत्र के भविष्य को लेकर आशंकाएं जताने वाले देशों और बुद्धिजीवियों की वाणी अब बंद हो चुकी है, बल्कि यहां के शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण की अब दुनिया भर में दुहाई दी जाती है। हमारे चुनाव आयुक्त बतौर पर्यवेक्षक न्योते जाते हैं। यह प्रतिष्ठा आयोग ने साढ़े छह दशकों में अर्जित की है और इसके पीछे उसका काफी कठिन परिश्रम है। इतनी विशाल जनसंख्या, भौगोलिक और भाषिक विविधता वाले देश में शांतिपूर्ण व निष्पक्ष चुनाव का दायित्व कोई आसान चुनौती नहीं है। लेकिन चुनाव आयोग ने न सिर्फ बैलेट से बटन तक का प्र्रगति भरा सफर तय किया, बल्कि इस दौरान उसने मतदाताओं की व्यापक भागीदारी का विश्वास भी कमाया। उसी विश्वास को अक्षुण्ण रखने की चिंता पूर्व चुनाव आयुक्तों में दिखी है। 
 
आयोग ने ईवीएम को लेकर लोगों की आशंकाओं को दूर करने के कई प्रयास किए हैं और इसी क्रम में उसने हालिया कर्नाटक चुनाव में सभी सीटों के एक बूथ पर वीवीपैट पर्ची से वोटों के मिलान का प्रयोग भी किया। जाहिर है, आयोग से यह अपेक्षा की जाएगी कि यह पद्धति सिर्फ एक बूथ तक सीमित न रखकर सभी ईवीएम में अपनाई जाए। अगले साल आम चुनाव से पहले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। आयोग को वहां इसका प्रयोग करना चाहिए। यकीनन, इसके लिए उसे बड़े पैमाने पर नई ईवीएम की जरूरत होगी। मगर आयोग को इस दिशा में  तत्परता से कदम उठाना होगा। चुनाव आचार संहिता के मामले में भी आयोग का रवैया अब तक काफी नरम रहा है। इस मामले में अक्सर उस पर सत्ताधारी पार्टी के दबाव में होने का आरोप मढ़े जाते रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि आयोग इस मामले में एक पारदर्शी तंत्र विकसित करे। भारतीय लोकतंत्र अपनी जिन चंद संस्थाओं पर गर्व कर सकता है, उनमें स्वतंत्र न्यायपालिका और स्वायत्त चुनाव आयोग शिखर संस्थाएं हैं। इनकी गरिमा व साख की रक्षा न सिर्फ इनके पूर्व-वर्तमान पदाधिकारियों के लिए, बल्कि भारत के आम नागरिक के लिए भी जरूरी है।

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