हिंसा के पाठ (Editorial Page) 23rd Jan 2018

By: D.K Chaudhary

अभी तक तो यही पढ़ने-सुनने में आता था कि अमेरिका के स्कूलों में गोलीबारी-चाकूबाजी की घटनाएं होती हैं, लेकिन पिछले कुछ महीनों में देश के कई हिस्सों में बच्चों में जिस तरह की हिंसक प्रवृत्ति देखने में आई है, उसने यह सोचने को मजबूर किया है कि बच्चे आखिर जा किस दिशा में रहे हैं। ऐसा ही रहा तो बच्चों का भविष्य क्या होगा! और साथ ही, हमारे समाज का क्या होगा! झकझोर देने वाला ताजा वाकया हरियाणा के यमुनानगर का है जहां एक स्कूल के छात्र ने अपनी प्राचार्य पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर उनकी जान ले ली।

उस दिन स्कूल में पीटीए (शिक्षक-अभिभावक बैठक) थी और यह छात्र इससे बचना चाहता था। कुछ महीने पहले गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में हुए प्रद्युम्न ठाकुर हत्याकांड ने देश भर को हिला दिया था। इस वारदात का आरोपी भी स्कूल का ही छात्र था। उसने मासूम प्रद्युम्न को सिर्फ इसलिए मार डाला था, ताकि सबका ध्यान इस घटना पर चला जाए और परीक्षा तथा पीटीए टल जाए। स्तब्ध कर देने वाला यह सिलसिला यहीं नहीं थमा। लखनऊ के एक स्कूल में सिर्फ छुट्टी के लिए ग्यारह साल की एक छात्रा ने सात साल के एक बच्चे को चाकू मार दिया। सातवीं कक्षा की इस छात्रा को उम्मीद थी कि इस घटना को अंजाम देते ही स्कूल की छुट्टी हो जाएगी।

बच्चों में हिंसा की इस समस्या की जड़ कहीं न कहीं उन्हेंमिल रहे परिवेश से जुड़ी है। ज्यादातर बच्चे घर और स्कूल, दोनों तरफ से पड़ने वाले मानसिक दबाव के शिकार हैं। परीक्षा में ज्यादा नंबर लाने, कैरियर बनाने, जल्द ही बहुत कुछ हासिल कर लेने जैसी प्रतियोगी भावना से वे खौफ और तनाव में आ जाते हैं। यह मानसिक परेशानी या तो उन्हें सिर्फ किताबी कीड़ा बना कर छोड़ देती है या राहत के लिए किसी भी हद तक ले जाती है। आज ज्यादातर स्कूली बच्चे मोबाइल और इंटरनेट की लत के शिकार हैं। उन्हें अपनी समस्याओं का समाधान इंटरनेट पर ज्यादा आसान नजर आता है और यहीं से उनके आत्म-केंद्रित और अकेलेपन के जीवन की शुरुआत होती है। यह ऐसी समस्या है जो बच्चों में कहीं न कहीं असुरक्षा की भावना भर रही है। और इसी से बाल मन हिंसा की ओर भाग रहा है। बच्चा बंदूक या चाकू का सहारा न ले, इसके लिए स्कूल प्रबंधन और अभिभावक का फर्ज बनता है कि वे बच्चे को दबाव तथा तनाव से मुक्त माहौल दें। सुरक्षा के लिहाज से पर्याप्त निगरानी भी रखी जाए।

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