हिंसा की लपटें (Editorial Page) 04th Fab 2018

By: D.K Chaudhary

उत्तर प्रदेश के कासगंज में दो समुदायों के बीच हुआ टकराव आज एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। अव्वल तो किसी भी मसले पर उठे विवाद का हल बातचीत के जरिए निकालने की कोशिश होनी चाहिए, लेकिन अगर हालात बेकाबू हो जाएं तो उसमें पुलिस और प्रशासन की भूमिका कठघरे में खड़ी होती है।

इससे ज्यादा अफसोस की बात क्या होगी कि देश के किसी भी हिस्से में आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह को जहां देश की एकता और अखंडता के साथ-साथ अलग-अलग समुदायों के बीच सौहार्द बढ़ाने का अवसर बनना चाहिए, वहां चंद लोगों की नाहक जिद और उन्माद ने सांप्रदायिक तनाव की रेखा खींच दी। उत्तर प्रदेश के कासगंज में दो समुदायों के बीच हुआ टकराव आज एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। अव्वल तो किसी भी मसले पर उठे विवाद का हल बातचीत के जरिए निकालने की कोशिश होनी चाहिए, लेकिन अगर हालात बेकाबू हो जाएं तो उसमें पुलिस और प्रशासन की भूमिका कठघरे में खड़ी होती है।

खबरों के मुताबिक जिस दिन कासगंज में एक नाहक टकराव ने सांप्रदायिक दंगे की शक्ल ले ली, उसके कई रोज पहले ही संवेदनशील इलाकों में नाजुक मौकों पर गलतफहमी पैदा करके अशांति फैलाने की कोशिश संबंधी रिपोर्ट केंद्र सरकार को दे दी गई थी। इसके बावजूद संबंधित महकमों ने समय रहते एहतियाती कदम उठाना जरूरी नहीं समझा। इसलिए गृह मंत्रालय ने उचित ही उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि कासगंज प्रशासन और पुलिस ने सावधानी बरती होती तो हिंसक शक्ल अख्तियार करने से पहले ही टकराव को रोका जा सकता था।

अब प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा है कि राज्य में अराजकता बर्दाश्त नहीं की जाएगी और उत्पातियों से सख्ती से निपटा जाएगा। इस मामले में कुछ आरोपियों की गिरफ्तारी भी हुई है। लेकिन क्या यह सच नहीं है कि उनकी सरकार और पुलिस ने समय रहते ठोस पहलकदमी और कार्रवाई नहीं की और उसके चलते हालात बिगड़ गए? दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार से कासगंज हिंसा मामले में पूरी रिपोर्ट देने को कहा है। हो सकता है कि अब हालात को संभालने के लिए प्रशासनिक स्तर पर सख्ती बरती जाए। लेकिन आखिर वे कौन-सी परिस्थितियां थीं कि कासगंज में हुई हिंसा के कई रोज पहले से ही संकेत होने के बावजूद केंद्र या राज्य सरकार को इस मसले पर कोई ठोस कदम उठाना जरूरी नहीं लगा? आजकल जिस तरह किसी निराधार बात को सच बता कर तेजी से अफवाह के रूप में फैला दिया जाता है और कई बार उसकी वजह से हिंसा भड़क उठती है, उससे निपटने के लिए सरकार के पास कौन-सा तंत्र है? कासगंज की घटना में भी अफवाहों का बड़ा हाथ था, लेकिन उसके असर में हालात बिगड़ने की आशंका होने के बावजूद पर्याप्त इंतजाम नहीं किए गए।

दरअसल, कुछ उत्पाती तत्त्वों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी बेलगाम गतिविधियों से समाज में आपसी सद्भाव और शांति को नुकसान पहुंचता है और इसका खमियाजा देश को उठाना पड़ता है। यह छिपी बात नहीं है कि पिछले कुछ समय से कुछ लोग संवेदनशील मुद्दों के नाम पर उत्पात या हिंसा की स्थिति पैदा कर रहे हैं। कासगंज में हुई हिंसा के संदर्भ में जिस तरह की खबरें आर्इं, उनसे साफ है कि कुछ अराजक तत्त्व जानबूझ कर ऐसी स्थिति पैदा करते हैं, जिससे टकराव की नौबत आए। यह समझना मुश्किल है कि बिगड़ी हुई स्थिति को संभालने के उलट कुछ लोगों को शांति और सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने से क्या हासिल होता है! राजनीति के मोर्चे पर किसी खास पार्टी को इस हालत का तात्कालिक फायदा मिल सकता है, लेकिन समाज के ढांचे पर इसका दूरगामी नकारात्मक असर पड़ता है, जिसे संभालना कई बार एक जटिल काम बन जाता है

About D.K Chaudhary

Polityadda the Vision does not only “train” candidates for the Civil Services, it makes them effective members of a Knowledge Community. Polityadda the Vision enrolls candidates possessing the necessary potential to compete at the Civil Services Examination. It organizes them in the form of a fraternity striving to achieve success in the Civil Services Exam. Content Publish By D.K. Chaudhary

Check Also

चुनाव में शरीफ Editorial page 23rd July 2018

By: D.K Chaudhary लाहौर के अल्लामा इकबाल इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर जब पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज …