रिकॉर्ड बनाना उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के लिए कोई नई चीज नहीं। इसे देश का और शायद दुनिया का सबसे बड़ा बोर्ड माना जाता है। सबसे ज्यादा छात्र इसी के सहारे शिक्षित होने का अपना उपक्रम आगे बढ़ाते हैं। छात्रों की यह बड़ी संख्या उसे हर तरह के रिकॉर्ड बनाने के अवसर देती है- अच्छे भी, बुरे भी। लेकिन इस बार बोर्ड के नतीजों में जो एक रिकॉर्ड सामने आया है, वह प्रदेश में शिक्षा की स्थिति की अलग ही कहानी कहता है। उत्तर प्रदेश में 150 स्कूल ऐसे हैं, जहां कोई भी छात्र पास नहीं हो सका, यानी सब के सब छात्र फेल। दिलचस्प है कि यह उस साल हुआ है, जब उत्तर प्रदेश बोर्ड में रिकॉर्ड संख्या में छात्रों ने सफलता दर्ज कराई है। यह मामला किन्हीं एक-दो जिलों या कस्बों का नहीं है। शत-प्रतिशत असफलता का रिकॉर्ड दर्ज कराने वाले स्कूलों का भूगोल काफी विस्तृत है। ये स्कूल उत्तर प्रदेश के कुल 75 में से 50 जिलों में फैले हुए हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश का गाजीपुर इनमें अव्वल है। इन 150 स्कूलों में सबसे ज्यादा इसी जिले से हैं। जिस दिन बोर्ड के नतीजे आए थे, उसके अगले दिन अखबारों ने हमें बताया था कि इलाहाबाद की अंजलि ने सर्वोच्च मेरिट लिस्ट में सर्वोच्च स्थान पाकर जिले का नाम ऊंचा किया, पर अब पता पड़ा है कि इसी जिले के छह स्कूल ऐसे हैं, जहां एक भी बच्चा पास नहीं हो सका। इन 150 स्कूलों में सरकारी स्कूल भी हैं, सरकार से आर्थिक मदद पाने वाले स्कूल भी और निजी स्कूल भी। यानी शिक्षा के सभी क्षेत्रों ने इसमें भरपूर भूमिका निभाई है।
यहां महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इस उपलब्धि का सेहरा किसके सिर बांधा जाए? छात्रों को कठघरे में खड़ा करना आसान है, क्योंकि असफलता तो उनके खातों में बाकायदा दर्ज हो चुकी है। लेकिन किसी कक्षा, किसी स्कूल, किसी गली, किसी मोहल्ले, किसी गांव के सारे ही छात्र फेल होने लायक हों, इसे न तो कोई शिक्षा-शास्त्र स्वीकार करेगा और न ही कोई समाज-शास्त्र। शिक्षा की एक सोच यह भी कहती है कि फेल छात्र नहीं होते, फेल तो दरअसल शिक्षक होते हैं। इस नाते हम चाहें, तो शिक्षकों को कठघरे में खड़ा कर सकते हैं, लेकिन एक सिरे से सारे शिक्षक नहीं पढ़ाते होंगे या खराब पढ़ाते होंगे, इस बात को किसी भी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता। ऐसी ही बात स्कूलों के बारे में भी कही जा सकती है। वैसे एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि इस बार उत्तर प्रदेश में सरकार ने नकल को रोकने और पास होने के लिए गलत तरीके अपनाए जाने पर काफी सख्ती बरती थी, इसलिए भी कुछ खास क्षेत्रों में परीक्षा के नतीजे बहुत खराब रहे। लेकिन यह तर्क भी आसानी से हजम होने वाला नहीं है कि प्रदेश के 150 स्कूल नकल और अनुचित तरीकों के भरोसे ही अपनी व्यवस्था चला रहे थे।
प्रदेश सरकार ने नकल और अनुचित तरीकों के खिलाफ सक्रियता दिखाकर बहुत अच्छा काम किया है। लेकिन इसका अगला कदम ऐसी व्यवस्था बनाने का होना चाहिए कि नकल की नौबत ही न आए। ऐसी व्यवस्था, जिसमें छात्र की प्रतिभा किसी एक परीक्षा के बल पर नहीं, बल्कि साल भर की उसकी पढ़ाई से मापी जाए। ऐसा हुआ, तो उन स्कूलों का भी भला होगा, जो अभी शत-प्रतिशत असफलता की बदनामी ढोने को मजबूर हैं। सबसे बड़ी बात है कि उन छात्रों का भला होगा, जिन्हें पढ़ाई से ज्यादा परीक्षा की तैयारी करनी होती है।