हत्यारी भीड़ पर लगाम Editorial page 08th July 2018

By: D.K Chaudhary
 
भीड़ द्वारा किसी को पीट-पीट कर मार डालने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी बेहद जरूरी हो गई थी कि ऐसी घटनाओं के लिए कोई भी तर्क मान्य नहीं हो सकता। कोर्ट ने साफ कहा कि उसे इनके पीछे के इरादों को लेकर कोई बात सुननी ही नहीं। इरादा कैसा भी हो, वजह कोई भी हो, भीड़ द्वारा किसी की जान लेना एक जघन्य अपराध है और इसे हर हाल में रोका जाना चाहिए। हालांकि देखा जाए तो कोर्ट ने कोई नई बात नहीं कही है। संवैधानिक और कानूनी स्थिति यही है। पर कोर्ट को यह दोहराने की जरूरत इसलिए पड़ी कि कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाल रही कई राज्य सरकारें इस पर अपेक्षित गंभीरता नहीं दिखा रहीं। 

प्राय: हर ऐसी घटना के बाद ऊंचे पदों पर बैठे लोग इसके लिए जिम्मेदार कारणों का बखान करने लगते हैं। इससे ऐसा लगता है जैसे वे इन घटनाओं का औचित्य साबित करने की कोशिश कर रहे हों। पुलिस कार्रवाई का आश्वासन जरूर दिया जाता है, ज्यादातर मामलों में पुलिस ने कार्रवाई की भी है, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं हुआ। हर घटना के बाद दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के दावों के बावजूद मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। पिछले दो महीने में ही ऐसी 13 घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 27 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। 

हैरानी की बात यह है कि पिछले साल 6 सितंबर को अदालत ने गौरक्षकों का उत्पात रोकने के लिए राज्य सरकारों से एक सप्ताह के अंदर हर जिले में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को नोडल ऑफिसर के रूप में नियुक्त करने को कहा था। मगर कई राज्य सरकारों ने यह काम अब तक नहीं किया। इस संबंध में आई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सभी पक्षों पर अदालत की नजर बनी हुई है। आगे क्या होगा यह तो आगे पता चलेगा, लेकिन फिलहाल कोर्ट ने इतना स्पष्ट कर दिया है कि ऐसे मामलों में कोई लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अपने विवेक से न सही कोर्ट के चाबुक से ही सही, राज्य सरकारों को इस मामले में ज्यादा चुस्त-दुरुस्त दिखना चाहिए।

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