सिस्टम व समाज दोनों दोषी 25th Oct 2017

BY: D.K Choudhary

 

सिस्टम व समाज दोनों दोषीसिस्टम व समाज दोनों दोषीप्रताड़ना से त्रस्त होकर तीन दिन में दो युवकों ने आत्महत्या कर ली।

इनमें से एक ने तो फेसबुक पर लाइव होकर फांसी लगाई। प्रताड़ना से त्रस्त होकर तीन दिन में दो युवकों ने आत्महत्या कर ली।

इनमें से एक ने तो फेसबुक पर लाइव होकर फांसी लगाई। दूसरे ने पहले अपनी पीड़ा बताते हुए वीडियो रिकॉर्डिंग की और फिर फांसी लगा ली।

दोनों घटनाएं सोनीपत में हुईं और दोनों में एक बात समान है कि यदि पुलिस अपनी जिम्मेदारी निभाती तो दोनों अपनी जान न देते।

शनिवार को जिस युवक ने आत्महत्या की, उसे तो प्रताड़ित करने वाले ही पुलिस कर्मी ही थे। सोमवार को जिस युवक ने आत्महत्या की, उसे एक गुंडा प्रताड़ित कर रहा था।

केवल इसलिए कि दोनों का नाम और पिता का नाम समान था। गुंडा कह रहा था कि वह युवक अपना नाम बदल ले और अपने पिता का नाम भी बदल दे। जाहिर है कि ऐसा संभव नहीं था।

गुंडे के उत्पीड़न से तंग युवक ने पुलिस को सूचना दी, लेकिन पुलिस ने उलटे उसे ही धमका दिया। इससे क्षुब्ध होकर उसने आत्महत्या कर ली।

दोनों ने वीडियो रिकार्डिंग का विकल्प इसलिए चुना कि पर्याप्त साक्ष्य रहें और उन्हें प्रताड़ित करने वाले बच न पाएं। लेकिन उन्हें यह सोचना चाहिए था

कि जब वे टूट गए तो उनके जान देने के बाद तो उनका परिवार और टूट जाएगा। फिर वह कैसे अपराधियों और भ्रष्ट पुलिस तंत्र से लड़ेगा?

इसलिए उन्हें खुद लड़ना चाहिए था। स्थानीय पुलिस ने यदि उनकी नहीं सुनी तो उन्हें शीर्ष पुलिस अधिकारियों के पास जाना चाहिए था।

न्यायालय की शरण लेते। मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, प्रधानमंत्री से गुहार लगाते। कहीं तो उनकी सुनवाई होती। मीडिया के सामने आते। अपनी पीड़ा बताते।

लेकिन उन्होंने संघर्ष का पथ नहीं चुना। उन्होंने यह नहीं सोचा कि इस तरह हार मान लेने से वे सहानुभूति के पात्र तो हो सकते हैं, लेकिन उनका यह कृत्य आएगा

अपकृत्य की श्रेणी में ही। हालांकि यदि वे लड़ने से विरत रहे तो इसमें भी उनका दोष कम समाज और सिस्टम का दोष ज्यादा है, जिसमें किसी मजबूर की सुनवाई नहीं होती।

और जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक ऐसी घटनाएं नहीं रुकेंगी। ऐसा हो इसलिए जरूरी है कि अपराधियों को तो सख्त सजा मिले ही उन्हें सरंक्षण देने वाले पुलिस कर्मियों को भी जेल में डाला जाए।

समाज को भी चाहिए कि वह अराजक तत्वों को सम्मान देने के बजाय उनसे किनारा करे। जब तक ऐसा नहीं होता, हम ऐसी दुखद खबरों से दुखी होते रहेंगे।

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