By: D.K Chaudhary
एएसईआर 2006 से ही शिक्षा की स्थिति पर अपने सालाना सर्वे की रिपोर्ट जारी करती रही है। मगर अब तक इसका फोकस 5 से 16 वर्ष तक के बच्चों पर होता था। इस साल फोकस बढ़ाकर इसमें 14 से 18 वर्ष के बच्चों को शामिल किया गया है। इस रिपोर्ट से शिक्षा क्षेत्र को लेकर जारी किए जाने वाले सरकारी आंकड़ों का झूठ उजागर हो गया है। साक्षरता दर को लेकर जो आंकड़े सरकार देती है वे प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय के आंकड़ों जितने ही निरर्थक होते हैं। खरबपतियों और भुखमरी के शिकार लोगों को साथ मिलाकर तैयार किए गए इन आंकड़ों से कोई जान नहीं सकता कि देश के ज्यादातर लोग कैसी बदहाली में जी रहे हैं।
साक्षरता के आंकड़े हमें इतना ही बताते हैं कि कितने बच्चों का नाम किसी स्कूल के रजिस्टर में लिखा गया। उनकी जानकारी या क्षमता पर इसका क्या असर पड़ा, इस बारे में ये कुछ नहीं बताते। एएसईआर की सर्वे रिपोर्ट शिक्षा की जमीनी हकीकत हमारे सामने पेश करती है। आठवीं से लेकर बारहवीं तक के एक चौथाई स्टूडेंट्स अगर पैसे नहीं गिन सकते, 44 फीसदी चार-पांच वजनों का जोड़ नहीं कर पाते और 40 फीसदी घंटे-मिनट में वक्त नहीं बता पाते तो उनकी शैक्षिक स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। ऐसे में सबसे खतरनाक बात यह है कि सरकारों ने बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी से तकरीबन पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया है। अगर राष्ट्र निर्माण की जरा भी चिंता हो तो साक्षरता प्रतिशत के दावे भूलकर अपना सारा ध्यान उन्हें व्यावहारिक शिक्षा के तकाजों पर केंद्रित करना चाहिए।