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समानता के लिए (Editorial Page) 12th Dec 2017

By: D.K Chaudhary

सुप्रीम कोर्ट ने अवैध संबंधों पर 150 साल पुराने कानून की समीक्षा करने का फैसला किया है। उसने केंद्र सरकार से कहा है कि वह चार हफ्ते के अंदर इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करे। गौरतलब है कि आईपीसी की धारा 497 के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करता है तो वह व्यभिचार का दोषी माना जाता है जिसके लिए उसे 5 साल तक की कैद और जुर्माने की सजा दी जा सकती है। मगर इसी मामले में व्यभिचार के दूसरे पक्ष (यानी अन्य व्यक्ति की पत्नी) को अपराध में सहभागी के तौर पर सजा नहीं दी जा सकती। 

मुख्य न्यायाधीश की अगुआई वाली तीन सदस्यीय बेंच को यह बात विचारणीय लग रही है कि व्यभिचार के मामले में हमेशा पुरुष ही अपराधी क्यों ठहराए जाते हैं, महिला क्यों नहीं? क्या एक ही अपराध के लिए पुरुष को सजा का पात्र मानना और महिला को छूट देना लिंग आधारित भेदभाव के अंतर्गत नहीं आता है? इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण पहलू अदालत की नजर में आया है। इसी धारा 497 के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी से उस व्यक्ति की सहमति के बगैर शारीरिक संबंध बनाता है तो वह व्यभिचार है। इसका मतलब यह है कि अगर किसी मामले में पति की सहमति हासिल कर ली जाए तो पत्नी के साथ संबंध बनाना इस धारा के मुताबिक व्यभिचार नहीं होता। कोर्ट इस सवाल पर भी विचार करना जरूरी मान रहा है कि क्या यह वैयक्तिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों के अनुकूल कहा जाएगा। 

सुप्रीम कोर्ट का यह रुख ऐतिहासिक इस अर्थ में भी है कि यह उसके पहले के स्टैंड के विपरीत है। 1985 में सुप्रीम कोर्ट के सामने सौमित्री विष्णु की एक याचिका के जरिए यही सवाल आया था। मगर तब कोर्ट ने समाज में महिलाओं की स्थिति के मद्देनजर इस प्रावधान पर पुनर्विचार की जरूरत से इनकार किया था। मौजूदा पीठ ने इस दौरान समाज में हुए बदलाव को भी संज्ञान में लिया है। उसके मुताबिक वक्त आ गया है जब समाज यह समझे कि महिलाएं हर मामले में पुरुषों के बराबर हैं। यह बराबरी कानून की नजरों में भी पूरी बारीकी से दर्ज होनी चाहिए। 

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