समझदारी का चश्मा Editorial page 04th June 2018

By: D.K Chaudhary

चश्मा कुछ लोगों के लिए जरूरी होता है, कुछ के लिए यह मजबूरी होता है, तो कुछ के लिए यह फैशन होता है, जिसे आईगियर भी कहा जाता है। कहते हैं कि चश्मे की ईजाद कमजोर होती नजरों को नई रोशनी देने के लिए की गई थी, लेकिन कुछ लोग इसका इस्तेमाल नजरें बचाने के लिए करते हैं, कुछ नजरें चुराने के लिए, तो कुछ नजरें छिपाने के लिए। और जो लोग अपनी सूरत को ही छिपाना चाहते हैं, चश्मा उनका सबसे पहला सहारा बनता है। हर चश्मे का भले ही अलग नंबर न होता हो, लेकिन हर चश्मा अपने पहनने वाले के बारे में एक अलग कहानी जरूर कहता है। कस्बाई और ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ समय पहले तक एक धारणा यह थी कि अगर किसी ने चश्मा लगाया है, तो वह जरूर ही कुछ समझदार होगा। और चश्मा सयानेपन की निशानी यूं ही नहीं बन गया। यह धारणा यूं बनी कि आमतौर पर नजरें गड़ाकर पढ़ने वालों की नाक पर चश्मा कुछ समय बाद टिक ही जाता है। यानी अगर आंखों में चश्मा है, तो आदमी पढ़ा-लिखा, समझदार होगा ही। और चश्मा लगाने वाली औरतों को निश्चित तौर पर समझदार मान लिया जाता था। चश्मे से जुड़ी ये सारी धारणाएं आपको कपोल कल्पित लग सकती हैं, लेकिन दिलचस्प यह है कि अब विज्ञान भी ऐसे ही नतीजों पर पहुंचने लगा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग ने हाल ही में अपने एक शोध में पाया कि जिनकी नजर कमजोर होती है, उनकी बुद्धि का स्तर काफी होता है। ऐसा नहीं है कि हर कमजोर नजर वाला हमेशा ही बुद्धिमान होता है और ऐसा भी नहीं है कि हर बुद्धिमान हमेशा ही कमजोर नजर वाला होता है। शोध में पाया गया कि कमजोर नजर वालों में बुद्धिमान लोगों का प्रतिशत सामान्य नजर वालों के मुकाबले कुछ ज्यादा होता है। वैसे इस शोध का विषय न तो चश्मा था और न ही बुद्धि। शोध का विषय था कि मनुष्य के आनुवंशिक गुण उसके जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं? इस शोध में वैज्ञानिकों ने 148 ऐसे जीन्स अलग किए, जो हमारे संज्ञान से जुड़े हैं। साथ ही इन जीन्स का कमजोर नजर या रक्तचाप जैसे रोगों से जुड़ाव भी देखा गया। नेचर कम्युनिकेशन  में प्रकाशित इस शोध के नतीजों में बताया गया कि सामान्य लोगों के मुकाबले कमजोर नजर वालों के बुद्धिमान होने की संभावना 30 प्रतिशत तक ज्यादा होती है। इस शोध के लिए 16 से 102 बरस की उम्र के 30,00,486 लोगों का अध्ययन किया गया। अध्ययन में यह भी पता लगा कि इंसान की संज्ञानात्मक क्षमता लंबी उम्र व स्वस्थ मस्तिष्क जैसी सकारात्मक चीजों से भी जुड़ी होती है। 

यहां पर एक अन्य सच को समझना भी जरूरी है। जैसे-जैसे समय बदल रहा है, चश्मा लगाने वालों की तादाद भी बढ़ रही है। इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि बुद्धिमान लोग भी उसी अनुपात में बढ़ रहे हैं। सच यह है कि बड़े पैमाने पर कमजोर नजर किसी जीन्स या आनुवंशिकता का नतीजा नहीं है, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक जमाने की देन है। हम दिन भर कंप्यूटर, टीवी और मोबाइल फोन के एलसीडी स्क्रीन पर लगातार आंखें गड़ाए रहते हैं और यह हमारी नजरों को कमजोर बना रहा है। एलसीडी स्क्रीन से हमारा रिश्ता अब बहुत छोटी उम्र से ही बनने लग गया है, इसलिए बहुत कम उम्र में ही बच्चों की आंखों पर चश्मा सज जाता है। अगर चश्मा सचमुच बुद्धिमान बनाता, या हमारी अक्ल की निशानी होता, तो हालात शायद यहां तक न पहुंचते।

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