नवाज और भुट्टो वहां भ्रष्ट, वंशवादी शासन के प्रतीक बन गए थे, इसलिए जनता ने इमरान को चुना और युवा बिलावल भुट्टो तक को नकार दिया। लेकिन इमरान के पक्ष में सबसे बड़ी बात यह रही कि पर्दे के पीछे से सेना और कुछ कट्टरपंथियों ने भी उन्हें अपना समर्थन दिया। पाकिस्तानी समाज को संचालित करने में इन दोनों की प्रमुख भूमिका है। इमरान ने चुनाव प्रचार में सेना के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। उलटे नवाज शरीफ पर फौज को कमजोर करने का आरोप लगाया। उन्होंने भारत के खिलाफ बयानबाजी का कोई मौका नहीं छोड़ा और युवाओं से वादा किया कि वह पाकिस्तान को भारत से आगे ले जाएंगे। इस बीच सबसे अच्छी बात यह हुई कि पाकिस्तानी जनता ने आतंकियों को आईना दिखा दिया। हाफिज सईद की पार्टी अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक (एएटी) के सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए। इमरान खान की असल परीक्षा अब शुरू होने वाली है। उन पर सेना का दबाव नवाज शरीफ से ज्यादा रहेगा। ऐसे में देखने की बात है कि वह भारत समेत बाकी दुनिया से किस तरह के रिश्ते बनाते हैं।
आतंकवाद पर वैसे भी पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है। विश्व बिरादरी में खुद को विश्वसनीय बनाने के लिए उन्हें कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। हाल के बरसों में कई फौजी अभियानों के बाद पाकिस्तान में सुरक्षा की हालत कुछ सुधरी है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान चरमपंथ के मूल कारणों पर ध्यान नहीं दे रहा है, लिहाजा चरमपंथी अब भी बड़े हमले करने की ताकत रखते हैं। आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान की हालत पतली है। कहा जा रहा है कि पांच साल के भीतर उसे आईएमएफ से दूसरा बेलआउट पैकेज मांगना पड़ सकता है। उसके केंद्रीय बैंक का विदेशी मुद्रा भंडार सिमटता जा रहा है और पाकिस्तानी रुपये में लगातार गिरावट आ रही है। बेरोजगारी वहां तेजी से बढ़ रही है और बढ़ती जनसंख्या एक संकट का रूप ले रही है। देखना है, नए प्रधानमंत्री इन चुनौतियों से कैसे निपटते हैं।