संपर्क फॉर समर्थन Editorial page 08th June 2018

By: D.K Chaudhary
 आम चुनाव अभी दूर है, लगभग एक साल बाद। लेकिन भारतीय जनता पार्टी इसमें कोई असर नहीं छोड़ना चाहती है, इसलिए वह अभी से मैदान में उतर चुकी है। जिस तरह से पार्टी अध्यक्ष अमित शाह देश भर में लोगों से संपर्क करते घूम रहे हैं, वह बताता है कि भाजपा अगले चुनाव को कितनी गंभीरता से ले रही है। अपने संपर्क फॉर समर्थन अभियान के तहत वह जिस तरह राजनीतिक नेताओं के अलावा विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों से मिल रहे हैं, उससे कितना कुछ हासिल होगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन इस अभियान से भाजपा एक माहौल तो बना ही रही है। पिछले दिनों हुए उप-चुनावों में जिस तरह से नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं रहे, उसे देखते हुए भाजपा पर पड़ रहे दबाव को समझा जा सकता है। संपर्क फॉर समर्थन की शुरुआत भले ही बाबा रामदेव से मुलाकात के साथ हुई, लेकिन इसके बाद अमित शाह के अगले पड़ाव थे मुंबई और फिर चंडीगढ़। दोनों ही जगह वे एनडीए के सहयोगी दलों के नेताओं से मिले, जिन्होंने पिछले आम चुनाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और अब अक्सर इन दलों की भाजपा से नाराजगी की खबरें आती रहती हैं। मुंबई में जिस दिन  अमित शाह शिव सेना नेता उद्धव ठाकरे से मिले उसके पहले ही दिन शिव सेना के मुखपत्र ने यह घोषणा कर दी कि शिव सेना अगले सभी चुनाव अकेले ही लड़ेगी। रिश्तों की यह खटास न तो नई है, और न ही किसी से छिपी है, उसके बाद भी अगर अमित शाह ने सीधे संपर्क का रास्ता अपनाया है, तो इसका अर्थ है कि गठबंधन की जरूरत को भाजपा बहुत शिद्दत से महसूस कर रही है। हालांकि अकाली दल से भाजपा के रिश्ते कुछ एक मुद्दों को छोड़कर ठीक बने हुए हैं, फिर भी प्रकाश सिंह बादल से उनकी मुलाकात भाजपा की इसी रणनीति का एक दूसरा उदाहरण है। जाहिर है कि अमित शाह का यह संपर्क अभियान सिर्फ प्रचार के स्तर पर माहौल बनाने भर का मामला नहीं है, बल्कि वह एनडीए के आधार को भी सुदृढ़ बना लेना चाहते हैं।

अमित शाह चुनावी राजनीति के सबसे मंजे हुए खिलाड़ियों में गिने जाते हैं और वह अच्छी तरह जानते हैं कि चुनाव जीतने के लिए कौन-कौन से तत्व कितने महत्वपूर्ण होते हैं? संपर्क माहौल बनाने में एक भूमिका निभा सकता है, इसलिए वह इसे पहले ही निपटा देना चाहते हैं। इसके आगे चुनाव लड़ने के लिए जमीनी यथार्थ के हिसाब से कई तरह के समीकरण साधने पड़ते हैं। अगर माहौल बनाने का काम पहले हो जाता है, तो शायद बाकी के लिए उन्हें पर्याप्त वक्त मिल जाएगा।
अमित शाह जिस समय मुंबई में उद्धव ठाकरे से मिल रहे थे, लगभग उसी समय कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मध्य प्रदेश के मंदसौर में एक किसान रैली को संबोधित कर रहे थे। अमित शाह के विपरीत राहुल की नजर अभी शायद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों से आगे नहीं देख रही। उन्हें लगता है कि अगर इन राज्यों में पार्टी को प्रदर्शन अच्छा रहा, तभी कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनेगा। इन तीनों राज्यों में अपनी सरकार बचाना भाजपा के लिए भी एक चुनौती है, लेकिन उसका बड़ा फोकस केंद्र में सरकार बनाए रखने पर है। वैसे भी भाजपा राज्यों के चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि के आधार पर ही लड़ रही है, और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का ताजा अभियान भी इसी छवि को नया निखार देने के लिए है।

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