यह तनाव शिलांग के बहुसंख्यक खासी आदिवासी समुदाय और वहां रह रहे पंजाबी यानी दलित सिख समुदाय के बीच उपजा है। घासी समुदाय को आमतौर पर शांतिपूर्ण माना जाता है। खासतौर पर शिलांग को देश के ऐसे शहर के रूप में गिना जाता है, जहां महिलाएं सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं। यहां रहने वाले दलित सिख समुदाय की आबादी बहुत थोड़ी है। इन्हें 160 से भी ज्यादा साल पहले सफाई के काम के लिए अंग्रेजों ने वहां बसाया था। कई पीढ़ियों के बाद भले ही इस समुदाय के लोग रिहाइश के लिए एक सीमित इलाके में रहते हैं, लेकिन वे न सिर्फ स्थानीय भाषा बोलने लगे हैं, बल्कि कई स्थानीय रीति-रिवाज भी उन्होंने अपना लिए हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसमें दोनों समुदायों के हित आपस में टकराते हों। इसीलिए इन दोनों समुदायों के बीच पहले अविश्वास पैदा होना, फिर तनाव बनना और उसके बाद हिंसा की खबरें परेशान करने वाली हैं। यह सब कुछ ऐसा है, जिसके बारे में हमने पहले कभी नहीं सुना था।
शिलांग की ये खबरें कई तरह के सवाल भी खडे़ कर रही हैं। कई पीढ़ियों से साथ-साथ रह रहे दो समुदाय कभी इस कदर क्यों न घुल-मिल सके कि उनमें दरारों व दूरियां की गुंजाइश न बच पाती? ऐसा क्यों होता है कि शांतिप्रिय माने जाने वाले समुदाय भी अचानक हिंसक दिखने लगते हैं? और जिस समाज को महिलाओं को सम्मान और ऊंचा दर्जा देने के लिए जाना जाता है, उस पर दूसरे समुदाय की औरतों से दुव्र्यवहार करने के आरोप कैसे आ जाते हैं? हालांकि इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने से पहले अभी प्राथमिकता यह है कि शिलांग में न सिर्फ शांति, बल्कि सद्भाव कायम किया जाए। वह भी कुछ इस तरह से कि दोनों समुदाय इस प्रक्रिया में जुड़ भी सकें।