शिक्षा में सुधार (Editorial Page) 03rd Jan 2018

By: D.K Chaudhary

शिक्षा में गुणवत्ता होनी चाहिए। नई सरकार ने कई अहम फैसले लिए हैं, लेकिन जरूरत इन फैसलों को मूर्त रूप देने की है।

प्रदेश में तीन हजार से अधिक स्कूलों में एक-एक शिक्षक ही तैनात हैं। नई सरकार से इस साल लोगों को उम्मीद है कि साल के अंत तक ऐसी स्थिति नहीं रहेगी।
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शिक्षा में गुणवत्ता होनी चाहिए। यह बात बार-बार किसी नारे की तरह दोहराई जाती है। आसान शब्दों में कहें तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का मतलब ऐसी शिक्षा है जो हर बच्चे के काम आए। इसी तरह की उम्मीद की किरण जगाते नई सरकार के कुछ ऐसे फैसले हैं जो शिक्षा के स्तर के साथ-साथ उसके ढांचे में भी बदलाव के संकेत दे रहे हैं। प्रदेश सरकार ने कार्यभार संभालने के साथ ही कई अहम फैसले लिए हैं, लेकिन जरूरत इन फैसलों को मूर्त रूप देने की है। आदर्श विद्यालय और ऑनलाइन ट्रांसफर पॉलिसी जैसे फैसले शिक्षा में गुणवत्ता के साथ-साथ पारदर्शिता लाने में भी सहायक होंगे। सत्ता को बदलने में अहम भूमिका निभाने वाले प्रदेश के सरकारी कर्मचारी तबादलों के संबंध में सबसे अधिक उलझन में रहते हैं। यही कारण है कि शिक्षा विभाग से लेकर अन्य कर्मचारी भी प्रदेश सचिवालय के चक्कर लगाते रहते हैं, लेकिन ऑनलाइन ट्रांसफर पॉलिसी से अब अध्यापकों को सचिवालय नहीं आना पड़ेगा। ऐसे में यह उम्मीद की जा सकती है कि सचिवालय के गलियारों से बचा समय शिक्षक स्कूल में बच्चों को देंगे। समाज को शिक्षित बनाने के लिए गुणवत्तायुक्त शिक्षा अहम कड़ी है। नई सरकार ने आदर्श विद्यालयों के जरिये शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने का खाका तैयार किया है। यह आदर्श विद्यालय प्राथमिक पाठशाला से लेकर वरिष्ठ माध्यमिक स्तर तक स्थापित किए जाएंगे। इसके अलावा स्कूलों में बॉयोमीट्रिक मशीन से उपस्थिति दर्ज करवाने की पहल भी सराहनीय है। हालांकि कुछ स्कूलों में यह व्यवस्था लागू है लेकिन अब सभी स्कूलों में इस व्यवस्था के सुचारू होने से बंक मारने वाले विद्यार्थियों और अध्यापकों पर भी शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों की सीधी नजर होगी। शिक्षा में सुधार के लिए यह योजना भी कारगर साबित होगी। इन सब सुधारों के बीच प्रदेश के स्कूलों में यह विचित्र स्थिति है कि वर्तमान में करीब तीन हजार से अधिक स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक-एक शिक्षक तैनात है। इसके अलावा 500 से अधिक स्कूल ऐसे भी हैं जहां नन्ही पौध की जिम्मेदारी अनियमित शिक्षकों के कंधों पर है। ऐसे में इन स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों को कितनी गुणवत्ता वाली शिक्षा मिल पा रही होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। जब तक स्कूलों में अध्यापकों के रिक्त पद खाली रहेंगे तब तक सुधार की गुंजाइश बनी रहेगी।

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