राज्य में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ावा देने के बजाए मात्र कंक्रीट का ढांचा तैयार करना छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ है। विडंबना यह है कि राज्य में हर विधायक की कोशिश होती है कि उसके इलाके में डिग्री कॉलेज खुले।
कॉलेज खोलना तो सरकार के लिए आसान है, लेकिन शिक्षा के इन मंदिरों में अगर दीप ही न जले तो सब बेमानी है। राज्य में शिक्षा को बढ़ावा देने के नाम पर पूर्ववर्ती सरकार ने 96 डिग्री कॉलेज खोल कर अपनी पीठ
तो थपथपा ली, लेकिन राज्य में कुकुरमुत्ते की तरह खुले कॉलेजों में अभी भी 31 ऐसे डिग्री कॉलेज हैं, जिनके पास अपनी इमारतें नहीं हैं। यहां तक कि इन कॉलेजों में छात्रों के पसंदीदा विषय भी नहीं पढ़ाए जा रहे हैं।
छात्रों को उनकी मर्जी से विषय थोपे जा रहे हैं। नतीजा यह है कि छात्र अपना भविष्य तय नहीं कर पा रहे हैं। कुछ डिग्री कॉलेज हायर सेकेंडरी स्कूलों में चल रहा है, जिससे स्कूलों में शिक्षा प्रभावित होकर रह गई है।
दूरदराज क्षेत्रों में रहने वाले छात्र अपने इलाकों में खोले गए डिग्री कॉलेजों में शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में ग्रामीण आंचल से आने वाले छात्रों की प्रतिभा दबकर रह गई है। हद तो यह है कि कश्मीर संभाग में
12 और जम्मू संभाग में 19 डिग्री कॉलेज किराए की इमारतों में चल रहे हैं। राज्य में चार हजार आठ सौ पचास स्कूलों के प्राइवेट बिल्डिंग में चलना शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। इनमें अधिकांश वे स्कूल हैं,
जो सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत खुले हैं। राज्य में कुल 23684 सरकारी स्कूल हैं, जिनमें से 4858 स्कूल ऐसे हैं, जिनके पास अपनी इमारतें तक नहीं हैं। ऐसे में सरकार का
17 नए डिग्री कॉलेज खोलने का फैसला छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ है। सर्वप्रथम सरकार को चाहिए कि वह स्कूल के बुनियादी ढांचों को मजबूत बनाए। यही नहीं, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत 636 स्कूलों
को अपग्रेड करना था, लेकिन सिर्फ 286 को ही अपग्रेड किया गया है। इससे पता चलता है कि कॉलेज और स्कूल खोलने की प्रतिस्पर्धा में सरकार गुणवत्ता को भूल गई है/