By: D.K Chaudhary
लोकसभा की चार और विभिन्न विधानसभाओं की 10 सीटों पर हुए उपचुनावों के नतीजे विपक्षी पार्टियों की एकजुटता का दम दिखाते हैं, लेकिन साथ ही ये मोदी सरकार के कामकाज को लेकर पैदा हो रहे असंतोष का संकेत भी देते हैं। अभी देश में उपचुनावों को भी काफी गंभीरता से लिया जाने लगा है। इससे सरकार को अपने कार्यकाल के बीच में अपना कामकाज परखने का अवसर मिलता है, साथ ही बदलते सियासी समीकरणों की ताकत भी तोलने में आ जाती है। नतीजे बताते हैं कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में, जहां बीजेपी की सरकार है, पार्टी के लिए चुनाव जीतना खासा मुश्किल हो रहा है।
बिहार में वह जूनियर पार्टनर की भूमिका में है, फिर भी वहां जोकीहाट में जेडीयू का कैंडिडेट बुरी तरह हारा। नीतीश का सुशासन सीट बचाने में कोई मदद नहीं कर सका। यूपी में कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट विपक्ष के उम्मीदवार जीते जबकि बीजेपी ने खासकर कैराना में काफी जोर लगाया था। जनता ने वहां भावनात्मक मुद्दों को नकार दिया और धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण नहीं होने दिया। झारखंड में भी दोनों विधानसभा सीटें जेएमएम ने जीतीं। महाराष्ट्र में पालघर लोकसभा सीट तिकोने मुकाबले में बचा ले जाने के बावजूद बीजेपी को कड़ी टक्कर मिली जबकि भंडारा-गोंदिया लोकसभा सीट पर कांग्रेस-एनसीपी की आपसी समझदारी निर्णायक सिद्ध हुई। इस उपचुनाव में अपोजिशन पार्टियों ने राष्ट्रीय स्तर पर कोई अतिरिक्त सक्रियता नहीं दिखाई, फिर भी उनके उम्मीदवार ज्यादातर जगहों पर जीत गए।
इससे एक बात तो साफ है कि 2014 में विपक्ष से टूटे मतदाता उसके पास वापस लौट रहे हैं। लंबी हताशा से गुजरे मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का आत्मविश्वास भी गुजरात में बीजेपी से तीखी लड़ाई में जाकर और कर्नाटक में हार के बावजूद अपने मनमाफिक सरकार बनवाकर बढ़ा हुआ है। उपचुनावों में उसने पंजाब की शाहकोट सीट अकाली दल से छीनी और मेघालय में एक सीट जीतकर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। इसके अलावा महाराष्ट्र और कर्नाटक की एक-एक विधानसभा सीटें उसके हाथ लगी हैं। पश्चिम बंगाल में माहेस्थल लोकसभा सीट जीतकर टीएमसी ने वहां अपना जलवा कायम रखा है, पर बीजेपी के लिए संतोष की बात है कि वह राज्य में लेफ्ट और कांग्रेस को पीछे धकेल कर दूसरे नंबर पर पहुंच रही है। उत्तराखंड की थराली विधानसभा सीट बचा ले जाना भी बीजेपी के लिए एक खुशखबरी है।
केरल में एक विधानसभा सीट जीतकर लेफ्ट ने वहां अपनी पकड़ कायम रहने का संकेत दिया है। इन उपचुनावों को 2019 के आम चुनावों का ट्रेंड सेटर नहीं माना जा सकता लेकिन बीजेपी के लिए इन्होंने एक खतरे की घंटी जरूर बजाई है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इन नतीजों को आगे छलांग लगाने के लिए दो कदम पीछे हटने जैसा बताया है। सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमत जैसे तात्कालिक मसलों पर तत्परता दिखाकर मतदाताओं के दिल को दोबारा छूने का प्रयास कर सकती है।