By: D.K Chaudhary
जो लोग गरीबी की वजह से मुचलका या जमानत राशि का इंतजाम नहीं कर पाते, उन्हें यह सहायता मुहैया कराने के लिए या तो बाकायदा सरकारी अनुदान से प्रबंध हो, या फिर जमानत की शर्तें इतनी लचीली बनाई जाएं कि गरीबी बाधा न बने। पर इस सिलसिले में एक और मसले पर भी विचार करना जरूरी है। फैसले के इंतजार में, यानी दोषसिद्धि के बिना जेल में बरसों-बरस बंद रहना एक घोर अन्यायपूर्ण स्थिति है। फैसला आने पर जो निर्दोष ठहराया जाता है वह इस व्यवस्था से पूछ सकता है कि उसे किस बात के लिए इतने दिन जेल में रखा गया था? उसे और उसके परिवार को जो तकलीफ उठानी पड़ी, इसकी जवाबदेही किसकी है? इस अवधि में अपना रोजगार न कर पाने के कारण उसे जो आर्थिक हानि हुई और उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को जो ठेस पहुंची, इस सब की भरपाई कैसे होगी? विडंबना यह है कि इस सवाल से हमारी न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका, सबने कन्नी काट रखी है। इसलिए हैरत की बात नहीं कि इस संबंध में भारत में अब तक कोईकानून नहीं है। जबकि अमेरिका में बाईस राज्यों में ऐसे मामलों में मुआवजा देने का कानून है। ब्रिटेन और न्यूजीलैंड जैसे कई और देशों ने भी इस संबंध में कुछ प्रावधान कर रखे हैं। भारत में भी इस तरह के मामलों में मुआवजा देने का कानून बनना चाहिए।