एक ऐसे समय में जब पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में करीब 12 हजार करोड़ रुपए के घोटाले को लेकर बैंकिंग व्यवस्था के साथ-साथ सरकार भी सवालों के निशाने पर है, तब यह सामने आना किसी आघात से कम नहीं कि चेन्न्ई की एक कंपनी कनिष्क गोल्ड ने देश के विभिन्न् बैंकों से आठ सौ करोड़ रुपए से अधिक की धोखाधड़ी को अंजाम दे दिया। इस कंपनी को 824 करोड़ रुपए का कर्ज देने वाले स्टेट बैंक समेत 14 बैंकों को अंदेशा है कि कंपनी के कर्ता-धर्ता विदेश भाग गए हैं।
भले ही प्रकट रूप में यह दिखे कि पंजाब नेशनल बैंक में घोटाले के बाद एक और बैंक घोटाला सामने आया, लेकिन सच यह है कि अन्य अनेक बैंक घोटालों की तरह इस घोटाले की जड़ें भी कहीं गहरे दफन हैं। वर्ष 2007 में कनिष्क गोल्ड को बैंकों द्वारा कर्ज देने के सिलसिले के साथ ही इस घोटाले की बुनियाद रख दी गई थी, यह स्पष्ट कर रहे हैं वे दस्तावेज, जिनके आधार पर लोन लिया गया। बैंकों की मानें तो इस कंपनी ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर उनसे कर्ज लिया। इसका सीधा मतलब यही है कि इन बैंकों द्वारा बिना किसी जांच-परख के करोड़ों रुपए का लोन दे दिया गया।
क्या यह हैरानी की बात नहीं कि इन बैंकों की नींद पिछले साल मार्च में जाकर तब टूटी, जब उन्हें ब्याज की राशि मिलनी बंद हो गई! यह बात तो तय है कि अगर रिजर्व बैंक ने फंसे कर्जे यानी एनपीए के बारे में एक निश्चित समय में पूरी सूचना देने का नियम नहीं बनाया होता, तो बैंक इसकी परवाह करने वाले नहीं थे कि कर्ज की राशि आखिर वापस क्यों नहीं आ रही है। यह लापरवाही की पराकाष्ठा तो नहीं और क्या है कि मार्च 2007 से लेकर जनवरी 2018 तक आठ सौ करोड़ रुपए का कर्ज देने वाले बैंक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे?
दरअसल यह दीवालिया संहिता में बदलाव किए जाने और रिजर्व बैंक की ओर से एनपीए को लेकर सख्ती दिखाने का नतीजा है कि पहले पंजाब नेशनल बैंक का घोटाला बाहर आया और फिर अन्य कई बैंकों के घोटाले सामने आए। यह मानकर चला जाना चाहिए कि कर्ज लेकर भागने अथवा उसे जान-बूझकर न चुकाने वालों के और मामले सामने आएंगे। ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि अब बैंकों के पास ऐसे लोगों अर्थात घोटालेबाजों और साथ ही अपनी कारगुजारी छिपाने की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है।
कर्ज देने के नाम पर जो बंदरबांट की गई, उसका खुलासा होना अच्छी बात है, लेकिन यह ठीक नहीं कि घोटालेबाज कारोबारियों और उनसे साठगांठ रखने वाले बैंक अफसरों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई होती अब भी नहीं दिख रही है। केंद्र सरकार को न केवल ऐसे भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने के मामले में कोई मिसाल कायम करनी होगी, बल्कि कर्ज के नाम पर बैंकों से लूट के रास्ते भी पूरी तरह बंद करने होंगे। यह ठीक नहीं कि बैंकों के कामकाज को सुधारने और उनकी निगरानी करने की जिम्मेदारी के मामले में रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय में सहमति नहीं दिख रही है।