मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत का झंडा बुलंद करने वाले न्यायाधीश से ही उनसे संबंधित याचिका को सूचीबद्ध करने को कहना हितों के टकराव से भी कहीं अधिक गंभीर बात है। महाभियोग सरीखे गंभीर मामले में तमाशा करने का जैसा काम किया गया उसकी मिसाल मिलना कठिन है। समझना कठिन है कि मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने की अगुआई करने वाले कपिल सिब्बल उक्त याचिका पर बहस करने कैसे पहुंच गए? क्या यह हितों का एक और टकराव नहीं? अगर कपिल सिब्बल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य के साथ ही एक बड़े वकील हैं तो इसका यह मतलब नहीं हो सकता कि उन्हें यह तय करने का अधिकार दे दिया जाए कि किस याचिका की सुनवाई कौन करे और कौन नहीं? उन्होंने याचिका वापस लेकर एक तरह से यह भी माहौल बनाया कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ छह से लेकर दस नंबर तक के पांच शीर्ष न्यायाधीशों पर भी भरोसा नहीं? भले ही वह यह कह रहे हों कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट की साख की परवाह है, लेकिन उनका आचरण ठीक इसके उलट है। इससे गंभीर बात और कोई नहीं हो सकती कि वरिष्ठ वकील ही सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा से जानबूझकर खिलवाड़ करते नजर आएं।