By: D.K Chaudhary
करीब छह महीने पहले कैग यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भी इस मसले पर जारी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यात्री सुपरफास्ट का किराया चुकाते हैं, लेकिन ट्रेन अगर उस गति से नहीं चले तो लोगों को उनका किराया लौटा दिया जाए। मगर इस पर गौर करने के बजाय राज्यसभा में रेलमंत्री पीयूष गोयल ने इस मसले पर सफाई देते हुए बरसों से कायम आधारभूत ढांचे को जवाबदेह बताया। निश्चय ही ट्रेनों के सुव्यवस्थित संचालन के लिए बुनियादी ढांचे का दुरुस्त होना जरूरी है, मगर इसी स्थिति में पहले हालत इतनी बुरी नहीं थी। ट्रेनों के मौजूदा परिचालन के मद््देनजर कोई भी यह कह सकने की स्थिति में नहीं है कि उसे अपने गंतव्य तक जाने के लिए आसानी से टिकट मिल जाएगा या वह वहां समय से पहुंच जाएगा। लेकिन इस बीच रेल महकमे ने सुविधाएं और सुरक्षा बढ़ाने के दावे के साथ फ्लैक्सी और प्रीमियम ढांचे के तहत किराया-वृद्धि से लेकर दूसरे मदों में यात्रियों से वास्तविक किराए के मुकाबले कई गुना ज्यादा पैसा वसूलना शुरू कर दिया है।
सवाल है कि इसके बावजूद क्या यात्रियों को वे सुविधाएं मिल पा रही हैं? कई ट्रेनों को करीब ढाई महीने तक के लिए पूरी तरह रद्द करने के बाद भी लगभग सभी ट्रेनों का अपने निर्धारित वक्त से कई-कई घंटे की देरी से पहुंचना आम बात हो चुकी है। फिलहाल जाड़े के मौसम में कोहरे की वजह से गाड़ियों के देरी से चलने का हवाला दिया जा रहा है। मगर सच यह है कि साफ मौसम में भी ट्रेन से कहीं निर्धारित समय पर पहुंचना दुष्कर होता गया है। लंबे समय से ट्रेनों को कोहरे का सामना करने वाली तकनीक से लैस करने की बातें कही जाती रही हैं, मगर इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गई। रेलवे में लाखों खाली पदों पर नियुक्ति की जरूरत सरकार को क्यों महसूस नहीं होती? इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि एक तरफ बुलेट ट्रेन के लिए तमाम इंतजाम किए जा रहे हैं, दूसरी ओर सामान्य गाड़ियों के परिचालन की व्यवस्था बुरी तरह बाधित है। क्या इसी तरह भारतीय रेलवे को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया जाएगा!