प्रतियोगी परीक्षाओं के पर्चे लीक होने का यह मामला नया नहीं है। अनेक बार नौकरियों के लिए होने वाली चयन परीक्षाओं में पर्चे लीक होने की घटनाएं हो चुकी हैं। यहां तक कि पूरी तरह चाक-चौबंद मानी जाने वाली लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के पर्चे भी लीक कराने में कुछ लोग कामयाब हुए हैं। इंजीनियरिंग और मेडिकल में प्रवेश परीक्षाओं के दौरान भी ऐसे प्रयास कई बार देखे गए हैं।
कर्मचारी चयन आयोग यानी एसएससी की परीक्षा के प्रश्नपत्र पहले ही कुछ लोगों के हाथ लग जाने को लेकर करीब हफ्ता भर पहले शुरू हुआ विद्यार्थियों का विरोध प्रदर्शन अब राजनीतिक रुख ले चुका है। सारे देश से आए हजारों छात्र दिल्ली में कर्मचारी चयन आयोग कार्यालय के बाहर धरना दे रहे हैं। उनका आरोप है कि परीक्षा शुरू होने से पहले ही पर्चे सोशल मीडिया पर जारी हो गए थे। मगर एसएससी के चेयरमैन का कहना है कि उनके पास इसके पुख्ता प्रमाण उपलब्ध नहीं हो सके हैं। उन्होंने विरोध प्रदर्शन कर रहे विद्यार्थियों से कहा भी कि वे पर्चे लीक होने के सबूत पेश करें, तो उसकी जांच कराई जा सकती है। पर दिल्ली के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कुछ नेताओं ने कहा कि इस मामले की सीबीआइ से जांच कराई जानी चाहिए, तो इस मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया। अण्णा हजारे भी छात्रों से मिले। फिर दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने केंद्रीय गृहमंत्री और एसएससी चेयरमैन से मिल कर इस मामले को सुलझाने का प्रयास किया, पर छात्र इस बात पर अड़े रहे कि जब तक उन्हें मामले की सीबीआइ जांच कराने का लिखित आदेश नहीं दिखाया जाता, वे अपना आंदोलन जारी रखेंगे।
पर्चे लीक कराने की ज्यादातर घटनाओं में उन कोचिंग संस्थानों का हाथ देखा गया है, जो विद्यार्थियों को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग देते और फिर उनके चयन की गारंटी लेते हैं। कुछ संस्थान हर साल बढ़-चढ़ कर दावे करते हैं कि उनके यहां से कोचिंग लेकर कितने विद्यार्थी सफल हुए। इस तरह ये कोचिंग संस्थान विभिन्न शहरों में अपनी शाखाएं खोलते और विद्यार्थियों से भारी फीस वसूल कर उन्हें कोचिंग देते हैं। एसएससी परीक्षा के कथित पर्चा लीक मामले में भी कुछ कोचिंग संस्थानों पर अंगुलियां उठ रही हैं। इस तरह पर्चे लीक करा कर कुछ संपन्न लोगों के बच्चों को नौकरियां दिलाने की प्रवृत्ति के चलते ऐसे बहुत सारे योग्य विद्यार्थियों को उनका हक नहीं मिल पाता, जो सचमुच उसके हकदार थे। इस तरह पैसे के बल पर सरकारी महकमों में अयोग्य लोगों की फौज जमा होती जाती है, जिसका असर सरकारी कामकाज पर पड़ता है। इसके चलते भ्रष्टाचार पर काबू पाना भी कठिन बना रहता है। इसलिए प्रतियोगी परीक्षाओं को विश्वसनीय और पूरी तरह अभेद्य बनाने की दिशा में व्यावहारिक कदम उठाया जाना जरूरी है।