सरकारी नौकरियों में आवेदन करने वाले उम्मीदवारों को साक्षात्कार जैसी प्रक्रिया से न गुजर कर अब चयन का लक्ष्य लिखित परीक्षाओं तक सीमित करने का फैसला सराहनीय है। सरकार के इस फैसले से साक्षात्कार के दौरान भ्रष्टाचार जैसे संगीन आरोपों से निजात मिलेगी और चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता आने से प्रतिभा उभर कर सामने आएगी। सरकार ने साक्षात्कार को समाप्त करने के फैसले को प्रभावी बनाने की शुरुआत शिक्षा विभाग के नान गजटेड शिक्षकों से की है। आने वाले दिनों में साक्षात्कार की यह प्रक्रिया पूरी तरह समाप्त कर दी जाएगी, जिससे प्रतिभाशाली उम्मीदवारों जिन्हें आशंका रहती थी कि साक्षात्कार में उनसे न्याय नहीं होगा, यह फैसला उनके लिए राहत भरा होगा।
वर्ष 1984 में एमबीबीएस की प्रवेश परीक्षा में फारूक अब्दुल्ला की सरकार पर धांधलियों के आरोप लगे थे, जिससे उनकी सरकार के अल्पमत में आने से सरकार गिर गई थी। उनके बहनोई जीएम शाह ने बहुमत साबित कर सरकार की बागडोर संभाली थी।शिक्षा विभाग में साक्षात्कार की प्रक्रिया को तो सरकार ने समाप्त कर इसे शुरुआती कदम बताया है। सरकार को चाहिए कि राज्य सेवा भर्ती बोर्ड के अलावा लोक सेवा आयोग जो गजटेड उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया पूरा करता है, उसे भी साक्षात्कार जैसी प्रक्रिया को खत्म करने की जरूरत है। यह अच्छी बात है कि राज्य सेवा भर्ती बोर्ड ने 1389 शिक्षकों, लेबोरेटरी और लाइब्रेरी असिस्टेंट्स के पदों को साक्षात्कार रहित बना कर उन्हें सार्वजनिक भी कर दिया है।
यहां तक कि यह परीक्षाएं ऑनलाइन होंगी, जिसमें मल्टीपल च्वाइस के 125 अंक होंगे, जिसमें 25 अंकों की नेगेटिव मार्किंग भी है। परीक्षा में वही उम्मीदवार उत्तीर्ण होगा, जिसने मेहनत की होगी। इसमें रत्ती भर भी हेराफेरी की गुजांइश नहीं होगी। इंटरव्यू की औपचारिकताओं को समाप्त करने का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो साल पहले लिया था, लेकिन जम्मू-कश्मीर में इसे लागू करने में काफी समय लग गया। फिलहाल, यह शिक्षा विभाग में ही लागू हो सकी।