By: D.K Chaudhary
अब जैसे जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ही नहीं, केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने भी कहा है कि बच्चियों से रेप करने वालों को फांसी की सजा दी जानी चाहिए। इस तरह की बात कई और नेता भी कहते रहे हैं। इससे जनाक्रोश को शांत करने में थोड़ी मदद तो मिलती है, पर यह कोई समाधान नहीं है। निर्भया कांड के बाद तो सरकार ने बलात्कार के अपराध से संबंधित कानूनी प्रावधानों को बेहद कठोर कर दिया, लेकिन इसके बावजूद रेप और महिलाओं के प्रति दूसरे अपराधों में कोई कमी नहीं आई है। अनेक विशेषज्ञों ने स्पष्ट कहा है कि अगर रेपिस्ट के लिए फांसी का कानून बना तो सबूत मिटाने के लिए बलात्कार की शिकार महिला की हत्या जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ेंगी।
मूल समस्या है कानून का पालन न होना, मामले की सुनवाई न हो पाना। बड़े शहरों में तो रेप की शिकायत दर्ज भी हो जाती है, मगर कस्बों और गांवों में तो यह भी नहीं होता। आमतौर पर पुलिस तब तक एफआईआर दर्ज नहीं करती, जब तक कि बड़ी संख्या में भीड़ थाने न पहुंच जाए। अक्सर अब कोर्ट के निर्देश पर प्राथमिकी दर्ज होती है। परंतु इससे भी बड़ी विडंबना यह है कि अदालतों में भी उन्हीं मामलों को प्राथमिकता और गति मिलती है, जो मीडिया की सुर्खियां बनते हैं। दो साल पहले के आंकड़े के अनुसार, रेप के चार में सिर्फ एक मामले में ही सजा हो पाई। इसी कारण अपराधियों का हौसला बढ़ रहा है। इसलिए फांसी या कानून को सख्त बनाने का जुमला छोड़कर मौजूदा कानूनों के ही सख्ती से पालन पर जोर दिया जाए। सरकार यह सुनिश्चित करे कि रेप की हर शिकायत दर्ज हो, मामला शीघ्र अंजाम तक पहुंचे और अपराधी को सजा हो।