बीमारी और इलाज (Editorial page) 23rd April 2018

By: D.K Chaudhary
 कांग्रेस की अगुआई में 7 राजनीतिक दलों ने राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू को नोटिस देकर देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा को हटाने की कार्यवाही अपनी तरफ से शुरू कर दी। अपीलीय अदालतों के अलग-अलग जजों को हटाने के मकसद से यह प्रक्रिया अभी तक 6 बार शुरू करवाई गई है, लेकिन मुकाम तक यह कभी नहीं पहुंची है। अलबत्ता प्रक्रिया शुरू होने के बाद 2 जजों ने इस्तीफा देकर इस प्रक्रिया को बंद जरूर करवाया है।
 देश के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ इस प्रावधान का इस्तेमाल करने की नौबत अभी तक नहीं आई थी, वह भी इस बार आ गई। इस लिहाज से देश की न्याय व्यवस्था के लिए यह समय अभूतपूर्व बदनामी का है। विपक्ष द्वारा लगाए गए 5 आरोपों में 2 ऐसे हैं जो मुख्य न्यायाधीश के अतीत से जुड़े हैं। एक तो उस दौर से, जब चीफ जस्टिस तो क्या वह जज भी नहीं थे। इन बिंदुओं पर आज बात करने का आशय गड़े मुर्दे उखाड़ने जैसा ही लिया जाएगा। कोई यह भी कह सकता है कि ये आरोप अगर इतने ही गंभीर थे तो उन पर पहले ध्यान क्यों नहीं दिया गया? लेकिन हां, आरोप पत्र में निश्चय ही कुछ बिंदु ऐसे भी हैं जो बतौर सीजेआई दीपक मिश्रा के काम करने के ढंग से सीधे तौर पर जुड़े हैं। इनके बारे में लोगों की राय अलग-अलग हो सकती है, पर इनकी अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता।

उदाहरण के लिए, किस तरह के केस किन-किन खास बेंचों को सौंपे जा रहे हैं, इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के अंदर सीनियर जजों के बीच संवादहीनता और अविश्वास इस हद तक बढ़ गया कि उनमें से 4 ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके देश के सामने इस विषय में अपनी नाराजगी जाहिर की। यह ऐतिहासिक घटना इस अंदेशे को सही साबित करने के लिए काफी है कि सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा। इस बिंदु पर आकर यह सवाल भी लाजमी हो जाता है कि क्या मौजूदा सीजेआई को हटा देने से देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था में नजर आ रही समस्याएं दूर हो जाएंगी? कल को नए मुख्य न्यायाधीश ने भी बेंचों को मुकदमों के बंटवारे के मामले में ठीक वही रवैया अपनाया तो यही इलाज क्या उसके साथ भी दोहराया जाएगा? जाहिर है, कुछ समय तक देश के मुख्य न्यायाधीश का पद संभालने वाले व्यक्ति का रहना या जाना उतनी बड़ी बात नहीं, जितनी सुप्रीम कोर्ट की साख बची रहना और इसके आड़े आने वाली गलतियों को ठीक किया जाना है।
विपक्ष ने मौजूदा सीजेआई के खिलाफ जो प्रक्रिया शुरू की है, उसका हश्र चाहे जो भी हो, पर इस बड़े काम में उससे कोई मदद नहीं मिलनी। सुप्रीम कोर्ट की भीतरी कार्यप्रणाली को दुरुस्त करने का काम सरकार या विपक्ष की दखलंदाजी से नहीं, अंतत: न्यायमूर्तियों की आपसी समझदारी से ही हो पाएगा।

 

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