उदाहरण के लिए, किस तरह के केस किन-किन खास बेंचों को सौंपे जा रहे हैं, इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के अंदर सीनियर जजों के बीच संवादहीनता और अविश्वास इस हद तक बढ़ गया कि उनमें से 4 ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके देश के सामने इस विषय में अपनी नाराजगी जाहिर की। यह ऐतिहासिक घटना इस अंदेशे को सही साबित करने के लिए काफी है कि सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा। इस बिंदु पर आकर यह सवाल भी लाजमी हो जाता है कि क्या मौजूदा सीजेआई को हटा देने से देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था में नजर आ रही समस्याएं दूर हो जाएंगी? कल को नए मुख्य न्यायाधीश ने भी बेंचों को मुकदमों के बंटवारे के मामले में ठीक वही रवैया अपनाया तो यही इलाज क्या उसके साथ भी दोहराया जाएगा? जाहिर है, कुछ समय तक देश के मुख्य न्यायाधीश का पद संभालने वाले व्यक्ति का रहना या जाना उतनी बड़ी बात नहीं, जितनी सुप्रीम कोर्ट की साख बची रहना और इसके आड़े आने वाली गलतियों को ठीक किया जाना है।
विपक्ष ने मौजूदा सीजेआई के खिलाफ जो प्रक्रिया शुरू की है, उसका हश्र चाहे जो भी हो, पर इस बड़े काम में उससे कोई मदद नहीं मिलनी। सुप्रीम कोर्ट की भीतरी कार्यप्रणाली को दुरुस्त करने का काम सरकार या विपक्ष की दखलंदाजी से नहीं, अंतत: न्यायमूर्तियों की आपसी समझदारी से ही हो पाएगा।
बीमारी और इलाज (Editorial page) 23rd April 2018
By: D.K Chaudhary