By: D.K Chaudhary
एक ज्ञान अर्थव्यवस्था बनने के लिए शिक्षा क्षेत्र की दुर्दशा खत्म करना बहुत जरूरी है। गनीमत है कि इस बार के बजट में ऐसी कुछ घोषणाएं मौजूद हैं, जिनसे इस क्षेत्र की चुनौतियों पर सरकार की नजर होने का संकेत मिलता है। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती है सरकारी स्कूलों में लगातार गिरता शिक्षा का स्तर। इस लिहाज से प्राइमरी शिक्षा पर चार साल में एक लाख करोड़ रुपये खर्च करने के अलावा वित्तमंत्री की यह घोषणा भी महत्वपूर्ण है कि 13 लाख से ज्यादा शिक्षकों के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था की जाएगी। इंटीग्रेटेड बीएड प्रोग्राम के तहत शिक्षक अपनी सेवा के दौरान ही बीएड कर सकेंगे। तकनीकी डिजिटल पोर्टल ‘दीक्षा’ इस मामले में खासा मददगार हो सकता है। उम्मीद करें कि शिक्षकों के प्रशिक्षण का सीधा फायदा उन स्टूडेंट्स को मिलेगा जो अपनी पढ़ाई के अलावा व्यक्तित्व के विकास के लिए भी काफी हद तक इन शिक्षकों पर निर्भर करते हैं।
प्रधानमंत्री फेलोशिप स्कीम इस बजट की एक और अहम घोषणा है। इसके तहत बीटेक कर रहे 1000 प्रतिभाशाली युवाओं को चिह्नित कर उन्हें आईआईटी और आईआईएससी जैसे संस्थानों में उच्चतर शिक्षा के अवसर मुहैया कराए जाएंगे। इन छात्रों को अच्छी-खासी फेलोशिप दी जाएगी, मगर इस उम्मीद के साथ कि वे सप्ताह के कुछ घंटे पिछड़े इलाकों के इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स को पढ़ाने में लगाएंगे। इस कदम से जहां इंजीनियरिंग कर रहे टैलंटेड स्टूडेंट्स को अच्छी पढ़ाई के साथ-साथ आमदनी का एक जरिया मिलेगा, वहीं इससे इंजीनियरिंग प्रफेसर्स की कमी भी एक हद तक पूरी होगी। यह जरूर सुनिश्चित करना होगा कि इन छात्र-शिक्षकों को टीचिंग की बुनियादी टेक्नीक पता हो।
50 फीसदी से ज्यादा आदिवासी आबादी वाले इलाकों में एकलव्य स्कूलों की स्थापना और जिला स्तर के मेडिकल कॉलेजों को अपग्रेड कर 24 नए मेडिकल कॉलेज व अस्पताल बनाने जैसे ऐलान भी सही दिशा में उठाए गए कदम हैं। प्राथमिक स्तर की शिक्षा का पूरा सरकारी ढांचा लगभग ध्वस्त हो चुका है। इसे संवारने के लिए केंद्र को राज्य सरकारों के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय मिशन शुरू करना चाहिए। इसके बिना देश के संपूर्ण मानव संसाधन का लगभग नब्बे फीसदी हिस्सा स्थायी अविकास का शिकार हो सकता है।