By: D.K Chaudhary
दरअसल हमारी व्यवस्था के सभी अंगों के स्वरूप और कामकाज की बुनियाद में जनतांत्रिकता अनिवार्य रूप से रही है। अहम मसलों पर सभी जजों को विश्वास में लेना जरूरी समझा जाता है। अगर यह परंपरा कमजोर हुई है तो यह चिंता का विषय है। वैसे भी पिछले कुछ समय में कुछ जजों के ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से भी न्यायपालिका की छवि को धक्का लगा है। अब अगर उसमें लोकतांत्रिकता भी खत्म होने लगी तो यह हमारे सिस्टम के लिए ठीक नहीं होगा। जुडिशरी के ऊपर भी कई तरह के दबाव हैं। उनकी कई व्यावहारिक समस्याएं हैं, जिनका समाधान होना चाहिए। न्यायपालिका की साख हर हाल में बचाई जाए। इसे महज न्यायपालिका के संकट के रूप मे नहीं लेना चाहिए। हमारी पूरी व्यवस्था के सामने यह चुनौती है कि इस मसले का ऐसा तर्कसंगत, न्यायपूर्ण और पारदर्शी हल निकाला जाए जो आम लोगों को भी संतुष्ट कर सके।