By: D.K Chaudhary
बहुचर्चित 2-जी मामले में गुरुवार को आए सीबीआइ की विशेष अदालत के फैसले ने जहां कांग्रेस को राहत दी है, वहीं भाजपा को खामोश कर दिया है।
भाजपा ने 2-जी मामले के जरिए कांग्रेस को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। खुद मोदी लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी रैलियों में इस मुद््दे को जोर-शोर से उठाते थे। पर अदालत के फैसले ने भाजपा को बगलें झांकने पर मजबूर कर दिया है और कांग्रेस को यह कहने का मौका दिया है कि उसे दुष्प्रचार का शिकार बनाया गया। करुणानिधि की पुत्री कनिमोड़ी और द्रमुक का दलित चेहरा कहे जाने वाले ए राजा के निर्दोष साबित होने से कांग्रेस के साथ ही द्रमुक ने भी राहत की सांस ली है। 2-जी मामले का हवाला देकर द्रमुक के भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप अन्नाद्रमुक लगाती रही है। पर अदालत के फैसले ने अन्नाद्रमुक से 2-जी का हथियार छीन लिया है। इससे तमिलनाडु की राजनीति में द्रमुक को लाभ हो सकता है। सियासी नफा-नुकसान की बात छोड़ दें, तो एक अहम सवाल यह है कि क्या 2-जी मामले में सीबीआइ की विशेष अदालत के फैसले का कोई सबक भी है? जाहिर है एक तरफ सबक कैग के लिए है तो दूसरी तरफ सीबीआइ के लिए। पर एक सबक सरकारी कामकाज की भाषा और तौर-तरीके को लेकर भी है।
अदालत ने अपने फैसले में यह रेखांकित किया है कि नीतियों में रही अस्पष्टता और दिशा-निर्देश में रही खामियों की वजह से भी बहुत-सी भ्रांतियां पैदा हुर्इं। दिशा-निर्देश ऐसी तकनीकी भाषा में लिखा हुआ था कि कई शब्द दूरसंचार विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के लिए भी अबूझ थे। अदालत ने सवाल उठाया है कि अगर वरिष्ठ अधिकारी ही विभागीय दिशा-निर्देश और शब्दावली न समझ पाएं, तो कंपनियों के नुमाइंदों या अन्य लोगों को कैसे दोष दिया जा सकता है! पर विभाग की तकनीकी शब्दावली से ज्यादा सवाल कैग की रिपोर्ट पर उठते हैं। हो सकता है 2-जी के आबंटन के सिलसिले में औपचारिकताओं के पालन में कुछ त्रुटियां रही हों, प्रक्रिया संबंधी कुछ कसर रह गई हो, लेकिन क्या इसी से कैग को 1.76 लाख करोड़ रु. के भारी-भरकम नुकसान का निष्कर्ष जारी कर देना चाहिए था?