फैसला और सवाल Editorial page 09th July 2018

By: D.K Chaudhary
बहुचर्चित पनामा पेपर्स से सामने आए भ्रष्टाचार के एक मामले में पूर्व पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ को जिस तरह से सजा सुनाई गई, उससे ऐसा लगता है कि इसके पीछे महज इंसाफ की भावना नहीं है। राजनीति के तकाजे भी परदे के पीछे अहम भूमिका निभा रहे हैं। पनामा पेपर्स के चौंकाने वाले खुलासों ने पिछले साल भारत समेत तमाम देशों में सुर्खियां बटोरीं। भारत और अन्य देशों की जांच एजेंसियों ने अपेक्षित संवेदनशीलता नहीं दिखाई, लिहाजा धीरे-धीरे ये मामले समय की गर्त में दब गए। 

पाकिस्तानी न्याय तंत्र की इस मायने में तारीफ होनी चाहिए कि उसने इस मामले को रफा-दफा नहीं होने दिया। तीन बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके नवाज शरीफ को पहले कोर्ट के दबाव में पद से इस्तीफा देना पड़ा और फिर बाकायदा 10 साल जेल भुगतने का आदेश भी सुनना पड़ा। फैसले के मुताबिक उनकी बेटी मरियम को भी सात साल जेल में रहना होगा। मरियम के पति को एक साल की जेल मिली है। इतना ही नहीं, नवाज के दोनों बेटों को भी भगोड़ा घोषित करते हुए उनके खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर दिया गया है। 

इस फैसले के न्यायिक और कानूनी पहलू जो भी हों, इतना स्पष्ट है कि इसके जरिए नवाज शरीफ के पूरे परिवार को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। नवाज के अपात्र घोषित होने के बाद मरियम चुनाव मैदान में उतर गई थीं। 25 जुलाई को होने वाले चुनाव के लिए छपे बैलट पेपर में भी उनका नाम आ गया था। मगर कोर्ट के ताजा फैसले के बाद वह चुनाव लड़ने के अयोग्य हो गई हैं। लिहाजा बैलट पेपर फिर से छापे जाएंगे। 

कुल मिलाकर देखा जाए तो नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल (एन) जो पाकिस्तान की एक बड़ी राजनीतिक ताकत है, पूरी तरह नेतृत्वविहीन हो गई है। इस शून्य का फायदा स्वाभाविक रूप से सेना और कट्टरपंथी तत्वों को मिलेगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई निश्चित रूप से अच्छी बात है, लेकिन इसके नाम पर लोकतांत्रिक और उदार प्रवृत्तियों को कुचला जाने लगे तो यह किसी भी समाज के लिए खतरे की घंटी होती है। देखना होगा कि पाकिस्तानी समाज का जागरूक हिस्सा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जारी रखने और लोकतंत्र को कमजोर न होने देने की इस दोहरी चुनौती से निपटने की कौन सी राह निकालता है। 

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