पदोन्नति का मसला Editorial page 06th June 2018

By: D.K Chaudhary

एक छोटी सी नौकरी पाकर लगातार आगे बढ़ते जाने के बहुत से सपनों पर अभी तक विराम लगा हुआ था। लेकिन केंद्र सरकार की नौकरियों में प्रमोशन या पदोन्नति का सिलसिला अब फिर शुरू हो जाएगा। पदोन्नति हर कर्मचारी की चाहत होती है, मगर अधिकारियों के लिए यही पदोन्नति कई परेशानियां भी लेकर आती है। किसे पदोन्नत किया जाए? किसे रोक दिया जाए? पदोन्नत किए जाने वाले पदों की संख्या हमेशा बहुत कम होती है और पदोन्नति चाहने वाले कर्मचारियों की संख्या हमेशा ही उसके मुकाबले काफी ज्यादा होती है, बल्कि हर कर्मचारी पदोन्नति की कतार में खड़ा होता है। पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था ने इस कठिन काम को और जटिल बना दिया है। समाज के दमित, दलित और कमजोर तबकों को नौकरियों में आरक्षण दिया जाना चाहिए कि नहीं, इससे कहीं ज्यादा तीखी बहस अक्सर इस बात को लेकर चलती रहती है कि कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दिया जाना चाहिए कि नहीं। देश की अदालतें भी काफी समय से इसमें सिर खपा रही हैं, मगर अभी तक हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके। कई उच्च न्यायालयों ने प्रमोशन में आरक्षण को लेकर या आरक्षण प्राप्त जातियों के मलाईदार तबकों को आरक्षण के हिसाब से प्रमोशन दिए जाने पर अलग-अलग तरह के फैसले दिए हैं, जिनकी वजह से भ्रम की स्थिति बन गई है। इसी को लेकर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट तो गई ही, साथ ही उसने किसी विवाद से बचने के लिए फिलहाल पदोन्नति के काम को ही पूरी तरह से रोक दिया। फिलहाल इस मामले की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि अदालत का अंतिम फैसला आने तक आरक्षण नियमों के हिसाब से पदोन्नति का काम जारी रहेगा।

ऐसा नहीं है कि इससे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या पिछड़ी जातियों के लोगों को ही लाभ मिलेगा। इससे उन सभी लोगों को लाभ मिलेगा, जिनका प्रमोशन रुक गया था। इसके बावजूद जिन्हें पदोन्नति नहीं मिल सकेगी, उन्हें भी यह उम्मीद तो बंधेगी ही कि यह रास्ता देर-सवेर उनकी पदोन्नति की ओर भी जाएगा। अभी तक आरक्षण का रास्ता पूरी तरह बंद था- सबके लिए, चाहे वे आरक्षित वर्गों के हों या अनारक्षित वर्गों के। किसी भी तंत्र के लिए यह ठहराव ठीक नहीं है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस रोक को हटाकर एक अच्छा काम किया है। क्योंकि ऐसी रोक से जो निराशा उपजती है, उसका असर पूरी सरकारी मशीनरी के कामकाज पर पड़ता है। उम्मीद है कि प्रमोशन में आरक्षण की बाकी उलझनें अदालत में जल्द ही सुलझ जाएंगी।

यह सच है कि आरक्षण के मुद्दे पर भारतीय समाज कुछ ज्यादा ही ऊर्जा बर्बाद करता रहा है। ऐसे लोग और संगठन पिछले कुछ समय से ज्यादा ही सक्रिय हैं, जो इसके तकरीबन हर पहलू को अदालत में चुनौती देते हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर इसके प्रावधानों को चुनौती देने की प्रवृत्ति भी लगातार बढ़ी है। ये सारी चीजें हमें किसी समाधान की ओर ले जाने की बजाय उलझा ही रही हैं। आरक्षण के ज्यादातार प्रावधानों  को कई दशक हो चुके हैं और अब तक इसे स्वीकार कर हमें एक सामाजिक संतुलन बना लेना चाहिए था। पर तमाम राजनीतिक और सामाजिक कारणों से यह नहीं हो सका है। कर्मचारियों की पदोन्नति का रास्ता तो अब खुल गया है, पर समाज की उन्नति में अभी कई बाधाएं हैं। 

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