नफरत की मूरतें (Editorial page) 09th March 2018

By: D.K Chaudhary

वैचारिक नेताओं की मूर्तियां तोड़ने का सिलसिला पूरे देश के लिए चिंता का विषय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन घटनाओं पर नाराजगी व्यक्त की है। गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एडवायजरी जारी करते हुए कहा है कि ऐसी किसी भी घटना पर कड़ी कार्रवाई की जाए। त्रिपुरा में बीजेपी की जीत के बाद वहां रूसी क्रांति के नायक लेनिन की दो मूर्तियां बुलडोजर लगाकर ढहा दी गईं। मंगलवार रात तमिलनाडु में ब्राह्मणवाद-विरोधी नेता पेरियार की और कोलकाता में जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति को नुकसान पहुंचाया गया। फिर बुधवार की सुबह मेरठ में लगी बीआर आंबेडकर की एक मूर्ति क्षतिग्रस्त मिली। चुनाव के बाद विजयी दलों द्वारा अपनी जीत के अति उत्साह में हिंसा करने की घटनाएं इधर काफी बढ़ गई हैं, लेकिन त्रिपुरा की जीत के बाद बीजेपी से जुड़े लोग अभी जो कर रहे हैं, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया था।

इसे तात्कालिक उन्माद भर मानकर किनारे नहीं किया जा सकता। सत्तारूढ़ पार्टी का अतीत ऐसा नहीं रहा है, लेकिन अभी तो वह अपनी हर जीत के बाद कुछ ऐसा दिखाती है, जैसे वह अपने विचारों और नीतियों को ताकत के बल पर ही लागू कराएगी और जो भी उससे असहमत होगा, उसे सबक सिखा दिया जाएगा। ऐसा सिर्फ निचले कार्यकर्ताओं के बर्ताव से जाहिर नहीं होता। पार्टी के बड़े नेता और सहयोगी संगठनों के शीर्ष लोग भी उनके सुर में सुर मिलाते हैं। पार्टी आलाकमान ऐसे बयानों पर कभी-कभार नाराजगी जाहिर कर देता है, लेकिन कोई गंभीर कदम नहीं उठाता। मूर्तिध्वंस का मामला ही लें तो शुरू में लगा कि यह किसी स्थानीय कार्यकर्ता की खुराफात हो सकती है। लेकिन बीजेपी के कई नेताओं ने घुमा-फिराकर इसे सही ठहराया।

वे यह कहकर इस कृत्य को जायज ठहरा रहे हैं कि त्रिपुरावासी वामपंथी शासन से घृणा करते रहे हैं, मूर्ति गिराना इसी की अभिव्यक्ति है। लोकतंत्र में असहमति जताने का सबसे अच्छा तरीका वोटिंग है। त्रिपुरा की जनता ने अपना फैसला सुना दिया। इसके बाद मूर्ति को तोड़ना नफरत भड़काने की कसरत के सिवा और क्या है? और इसे पेरियार से लेकर आंबेडकर तक खींचने का क्या तर्क हो सकता है? क्या बीजेपी के लोग यह बताना चाहते हैं कि वे देश में अब तक चले सारे सामाजिक आंदोलनों को मटियामेट कर देंगे? अगर ऐसा कुछ है तो उन्हें इसके दूरगामी नतीजों का आकलन कर लेना चाहिए। एक सभ्य समाज अपने इतिहास को संजो कर रखता है, भले ही वह उसके वर्तमान से मेल खाता हो या नहीं। इस तरह मूर्तियों की तोड़फोड़ के जरिए प्रतिगामी ध्रुवीकरण का प्रयास देश के लिए नुकसानदेह है। प्रधानमंत्री इससे चिंतित हैं तो इसे यहीं रोक दें

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