नए जमाने की लत (Editorial page) 12th March 2018

By: D.K Chaudhary

हममें से बहुत से लोग अपनी या अपने बच्चों की स्मार्टफोन की लत से परेशान हैं। जबकि दुनिया भर के मनोवैज्ञानिक इस बात को लेकर परेशान हैं कि यह लत इतनी प्रबल क्यों है? उनके पास लत छुड़ाने के जितने भी तरीके हैं, वे सब इसके आगे बेकार साबित हो रहे हैं। स्मार्टफोन में एक साथ दो चीजें हैं। एक उसकी उपयोगिता और दूसरी उसकी लत। लत छुड़ाने के सारे तरीके यही कहते हैं कि जिस चीज की लत हो, उससे दूर रहने की लगातार कोशिश करनी चाहिए। पर इसकी उपयोगिता इतनी महत्वपूर्ण है कि आप उससे बहुत ज्यादा दूरी भी नहीं बना सकते। लोकल टे्रन में, बस में, स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, सड़क, फुटपाथ पर, हर जगह आपको कई ऐसे लोग दिख जाएंगे, जो पूरी तरह अपने स्मार्टफोन में डूबे हुए होते हैं। जो नहीं डूबे होते, वे भी हर कुछ समय बाद अपने स्मार्टफोन को निकालकर यह देखना नहीं भूलते कि कोई नया संदेश, कोई नई ई-मेल, कोई नई फेसबुक पोस्ट, कोई नया ट्वीट तो नहीं आया। कुछ तो इस चक्कर में अपने आस-पास के माहौल से, आस-पास के लोगों से पूरी तरह बेखबर दिखाई देते हैं। इसीलिए अक्सर यह भी कहा जाता है कि स्मार्टफोन लोगों को असामाजिक बना रहा है। या कम से कम उनकी सामाजिकता तो उनसे छीन ही रहा है। यह तब और लगता है, जब लोगों के नफरत फैलाने वाले या कुंठा भरे संदेश दिखाई देते हैं।

लेकिन अब मनोवैज्ञानिकों ने स्मार्टफोन को एक नए ढंग से देखना शुरू किया है। उनका कहना है कि सामाजिकता इंसान की सबसे पुरानी या यूं कहें कि आदिकालीन लत है। हर इंसान लोगों से जुड़ना चाहता है, कभी अपनी पहचान के नाम पर, कभी अपने किसी मकसद के लिए, या कभी जीवन का अर्थ खोजने के लिए। मैकगिल विश्वविद्यालय के सैमुअल वेलसिरी का कहना है कि स्मार्टफोन ने इंसान की इसी लत को एक नया आयाम दिया है। पुराने मोबाइल फोन की लत उतनी परेशान करने वाली नहीं थी, जितनी कि आज के स्मार्टफोन की लत है। और इसका कारण है, स्मार्टफोन से मिलने वाला सोशल मीडिया का सुख। स्मार्टफोन में डूबे हुए लोग भले ही अपने आस-पास के माहौल से दूर दिखते हों, लेकिन वे अपने बहुत सारे दूसरे तरह-तरह के दोस्तों से जुड़े रहते हैं। कई बार वे भले ही अपने परिवार के सदस्यों को नजरंदाज कर रहे हों, लेकिन वे अपने वाट्सएप गु्रप के साथ लगातार शरीर और मन से सक्रिय बने रहते हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जिसे हम अक्सर स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों की असामाजिकता मान बैठते हैं, उसके पीछे दरअसल उनकी एक अन्य तरह की अतिशय सामाजिकता है। किसी भी चीज की अति जैसे उग्र हो जाती है, वैसे ही इस सामाजिकता में भी हमें अक्सर उग्र तेवर दिखते हैं।

यहां असल सवाल यह है कि इस लत से पीछा कैसे छुड़ाया जाए? मनोवैज्ञानिकों के पास इसका कोई पक्का समाधान नहीं है। उनके पास इसके लिए कुछ नुस्खे जरूर हैं। जैसे हर रोज एक निश्चित समय के लिए पुश मैसेज को बंद कर दिया जाए। हो सके, तो सोते समय, खाना खाते, टहलते या कसरत करते समय मोबाइल फोन को या तो बंद कर दें या अपने से दूर रखें। हालांकि यह सबके लिए संभव नहीं है, खासकर तरह-तरह के पेशेवर दबावों के चलते। एक सोच यह भी है कि समस्या बढ़ेगी, तो अपने समाधान के रास्ते भी खुद ही निकालेगी।

About D.K Chaudhary

Polityadda the Vision does not only “train” candidates for the Civil Services, it makes them effective members of a Knowledge Community. Polityadda the Vision enrolls candidates possessing the necessary potential to compete at the Civil Services Examination. It organizes them in the form of a fraternity striving to achieve success in the Civil Services Exam. Content Publish By D.K. Chaudhary

Check Also

चुनाव में शरीफ Editorial page 23rd July 2018

By: D.K Chaudhary लाहौर के अल्लामा इकबाल इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर जब पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज …