By: D.K Chaudhary
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले महीने एक नवंबर को केंद्र से सांसदों और विधायकों की संलिप्तता वाले उन 1581 मामलों के बारे में विवरण पेश करने का निर्देश दिया था जो 2014 के आम चुनावों के दौरान नामांकन दाखिल करने के क्रम में सामने आए थे। जाहिर है, इससे संबंधित ब्योरा इकट्ठा करने में कुछ समय लग सकता है। लेकिन अगर सरकार के भीतर राजनीति को अपराध से मुक्त करने की इच्छाशक्ति है तो उसे इस मसले पर ज्यादा टालमटोल नहीं करना चाहिए। यह किसी से छिपा तथ्य नहीं है कि अदालतों में पहुंचे मामलों में सुनवाई और फैसलों की क्या गति है। मगर राजनीतिकों से जुड़े मामलों में एक खास स्थिति यह बन जाती है कि वे किसी अपराध के आरोप को अपने साथ लिए हुए आम जनता की नुमाइंदगी कर रहे होते हैं। यह एक विडंबना से भरी हुई स्थिति है कि कोई नेता खुद किसी अपराध के आरोप के तहत अदालत के कठघरे में खड़ा हो और वही कानून बनाने या उसे लागू करने की प्रक्रिया में भी शामिल हो।
हालांकि निर्वाचन आयोग और विधि आयोग की एक सिफारिश पर अमल होता है तो आपराधिक मामलों में दोषी साबित हुए नेताओं को उम्र भर के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जा सकता है। लेकिन अगर मौजूदा कानून-व्यवस्था में किसी आरोपी को चुनाव लड़ने और सांसद या विधायक बनने की सुविधा प्राप्त है भी तो यह अपने आप में एक सुधार का सवाल है। फिर एक पहलू यह भी है कि अब तक राजनीतिकों पर लगे आरोपों में दोषसिद्धि की दर बेहद कम रही है। ऐसे मामले हो सकते हैं, जिनमें राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की वजह से किसी नेता को झूठे आरोपों के चलते भी मुकदमे में उलझना पड़ता है। लेकिन यह एक सामान्य स्थिति नहीं हो सकती। ऐसे तमाम मामले जगजाहिर है, जिनमें आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग भी कानूनी प्रावधानों में राहत का फायदा उठा कर चुनाव लड़ते हैं और जीत कर विधायक या सांसद बन जाते हैं। ऐसी स्थिति में किसी आपराधिक मामलों में स्पष्ट संलिप्तता के आरोपों की सुनवाई और उन पर फैसला अगर जल्दी हो तो यह समूची भारतीय राजनीति के लिए अच्छा होगा।