ताज की फिक्र (Editorial Page) 10th Fab 2018

By: D.K Chaudhary

प्रदूषण की मार से ताजमहल को जो गंभीर खतरा पैदा हो गया है, वह वाकई चिंता का विषय है। इस विश्व धरोहर को बचाने के लिए कई सालों से कोशिशों के नाम पर अब तक जो किया गया, उसके कोई ठोस नतीजे सामने नहीं आए हैं। यह स्थिति तब है जब सर्वोच्च अदालत समय-समय पर इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार और संबंधित प्राधिकारों को आदेश देती रही है। हकीकत यह है कि ताजमहल पर खतरा कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। हाल में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से फिर पूछा है कि ताज को बचाने के लिए सरकार क्या कर रही है, इस बारे में विस्तार से बताते हुए दृष्टिपत्र पेश किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ताज के आसपास और इसके चारों ओर दस हजार चार सौ वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में चमड़ा उद्योग और होटल बनाने पर पाबंदी लगा चुका है। लेकिन दुख की बात है कि अदालत के निर्देशों को धता बताते हुए ये निर्माण बदस्तूर जारी हैं। इस विशाल क्षेत्र के दायरे में आगरा, मथुरा, फिरोजाबाद, हाथरस और एटा जिले और राजस्थान का भरतपुर जिला आता है।

ताजमहल को सबसे बड़ा खतरा वायु प्रदूषण से तो है ही, साथ ही इन जिलों में जो उद्योग चल रहे हैं वे संकट को और बढ़ा रहे हैं। आगरा का चमड़ा उद्योग और फिरोजाबाद का चूड़ी उद्योग वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। आगरा में तो उद्योगों से निकलने वाले जहरीले रसायन और अपशिष्ट यमुना नदी में ही गिरते हैं। यही गंदा और जहरीला पानी ताज की नींव को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। सरकार और प्रशासन की ओर से ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा जिससे ताज के संरक्षण के प्रति जरा भी गंभीरता झलकती हो। अदालती दबाव में ताज को बचाने के लिए अगर कुछ हो भी रहा है, तो वह इतनी मंथर गति से, जैसे यह काम प्राथमिकता में है ही नहीं। अदालती आदेशों को लागू करने में सरकार की दिलचस्पी कितनी है, यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि सर्वोच्च अदालत ने जब ताज के आसपास के विशाल क्षेत्र में चमड़ा उद्योग और होटलों के निर्माण पर पाबंदी लगा दी थी, उसके बाद भी यह सब होता रहा। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार के पास कोई ऐसा निगरानी तंत्र नहीं था, जो यह सब देखता और इन्हें रोकता?

ताजमहल को बचाने के लिए योजनाएं तो बनीं और इन्हें लागू भी किया गया, लेकिन ये सतही और फौरी ही साबित हुर्इं। जैसे ताज के आधा किलोमीटर के दायरे में वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध है। संरक्षित क्षेत्र में चूल्हा, उपले और कोयला जलाने पर पाबंदी है। आगरा, फिरोजाबाद और मथुरा में लोगों को गैस कनेक्शन दिए गए हैं। पर उद्योगों के प्रदूषण से निपटने के मोर्चे पर बहुत कुछ हुआ हो, ऐसा नजर नहीं आता। समस्या सिर्फ ताज तक सीमित नहीं है। बढ़ते प्रदूषण से देश की अन्य ऐतिहासिक धरोहरों के समक्ष भी यह खतरा है। सरकारों को चाहिए कि समय रहते इनके संरक्षण के लिए कड़े कदम उठाएं। एक से एक योजनाएं और प्रस्ताव तो खूब बनते रहते हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन पर अमल करने की इच्छाशक्ति कोई नहीं दिखाता। वरना क्या ताज को बचाना कोई मुश्किल काम है!

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