फिर भी ज्यादातर राज्य सरकारें पिछले 12 साल से सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की अनदेखी करती रहीं। कुल 29 में से 24 राज्य सरकारें कभी यूपीएससी के पास गईं ही नहीं। आखिरकार केंद्र की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों के लिए अगर-मगर की गुंजाइश ही खत्म कर दी। हालांकि अहम प्रशासनिक पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया में चुनी हुई सरकार की भूमिका कम करके एक गैरनिर्वाचित निकाय की भूमिका बढ़ाने पर कुछ जायज संदेह भी उठाए जा सकते हैं, लेकिन यहां अलग से यह रेखांकित करना जरूरी है कि फैसले का अधिकार अंतिम रूप से राज्य सरकार के ही पास है। यूपीएससी की भूमिका यहां सहयोगात्मक ही रखी गई है। उम्मीद करें कि इन उपायों से राज्य सरकार को सर्वश्रेष्ठ पुलिस प्रशासक मिलेंगे, जिनके सामने राजनीतिक स्वार्थों के दबाव में चलने की मजबूरी नहीं होगी।
डीजीपी वाया यूपीएससी Editorial page 07th July 2018
By: D.K Chaudhary
राज्यों में पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की नियुक्ति के संबंध में जारी किया गया सुप्रीम कोर्ट का ताजा दिशा-निर्देश पुलिस सुधारों की दिशा में एक जरूरी पहल है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है कि डीजीपी नियुक्त करने के मामले में अपनी मनमर्जी चलाने के बजाय राज्य सरकार यह पद खाली होने से कम से कम तीन महीने पहले संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को सूचना दे। कोर्ट द्वारा तय मानकों के हिसाब से यूपीएससी इस पद के योग्य ऑफिसरों की एक सूची राज्य सरकार को देगी और सरकार उस लिस्ट में से ही किसी एक को इस पद पर नियुक्त करेगी। निर्देश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि डीजीपी का कार्यकाल कम से कम दो साल होगा। अगर इससे पहले उसके रिटायरमेंट की तारीख आ जाती है तो भी कार्यकाल पर कोई असर नहीं होगा। पुलिस सुधारों से जुड़े इन कदमों की अहमियत इस बात से महसूस की जा सकती है कि लंबे समय से सरकारों के संज्ञान में होने के बावजूद इन्हें अमल में लाने की कोशिश नहीं की जा रही थी। सरकारों के रुख से निराश होकर दो पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह और एन के सिंह पुलिस सुधार आयोग की सिफारिशें लागू करवाने की गुजारिश लेकर कोर्ट पहुंचे थे। सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में ही फैसला दे दिया था कि डीजीपी पद पर नियुक्ति यूपीएससी द्वारा तैयार की गई तीन सबसे सीनियर अफसरों की सूची में से ही की जाए।