जासूस अधिकारी (Editorial page) 11th Fab 2018

By: D.K Chaudhary

आपस में उलझे हुए दो देशों के बीच जासूसी कोई नई चीज नहीं है। सेनाएं और खुफिया एजेंसियां इससे अच्छी तरह निपटना भी जानती हैं। इसलिए समय-समय पर जासूस पकड़े भी जाते हैं। दुश्मन देश के जासूस का पकड़े जाना एक सामान्य सी बात है, लेकिन स्थिति उस समय असहज हो जाती है, जब अपने ही देश का कोई व्यक्ति दुश्मन के लिए जासूसी करते पकड़ा जाए। यह तब और भी दिक्कत भरा होता है, जब पकड़ा जाने वाला व्यक्ति सेना का ही कोई अधिकारी हो। भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन अरुण मारवाह की गिरफ्तारी इसी लिहाज से परेशान करने वाली खबर है। वायु सेना के मुख्यालय में तैनात इस अधिकारी को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने जिस तरह से अपने जाल में फंसाया, उससे हमारे कान खड़े हो जाने चाहिए। आईएसआई ने उन्हें फंसाने के लिए सदियों पुराने तरीके से प्रलोभन दिया। फर्क इतना है कि इसके लिए जिस तकनीक का इस्तेमाल किया गया, वह आधुनिक थी। सैनिकों को प्रलोभन देने के लिए विषकन्याओं के इस्तेमाल की कहानियां हम हमेशा से सुनते आए हैं, लेकिन इस बार कोई विषकन्या नहीं, बल्कि महिलाओं के नाम पर बनी फेक आईडी थी। अधिकारी महोदय फेसबुक पर इनके चक्कर में पड़े और यह संपर्क वाट्सएप तक पहुंच गया। यहीं पर थोड़ा आगे चलकर महत्वपूर्ण खुफिया जानकारियां लीक होने लगीं। कम से कम रक्षा मंत्रालय से मिली खबरों में तो यही बताया गया है। हकीकत अगर सचमुच में ऐसी ही है, तो हमारी परेशानी और भी बढ़ जानी चाहिए।

अरुण मारवाह ग्रुप कैप्टन स्तर के बड़े अधिकारी थे। हमें पता नहीं है कि सेना की सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जानकारियों तक किस स्तर के अधिकारियों की पहुंच होती है। लेकिन यह उम्मीद तो की ही जाती है कि ऐसे दस्तावेजों की सुरक्षा के कई तरह की अतिरिक्त सतर्कता बरती जाती होगी। साथ ही जिन अधिकारियों की ऐसे दस्तावेजों तक पहुंच होती है, उन पर भी खास नजर रखी जाती होगी। उसके बाद भी अगर यह सब हो रहा है, तो सुरक्षा कवच में कहीं ढील या कोई झोल बचा रह गया है। खबरों में यह भी बताया गया है कि अरुण मारवाह जिस स्तर के अधिकारी थे, उन्हें मुख्यालय में स्मार्टफोन साथ ले जाने की इजाजत थी। आज के दौर में स्मार्टफोन पर पूरी पाबंदी शायद मुमकिन न हो, लेकिन ऐसे में, नेटवर्क पर गतिविधियों की विशेष निगरानी तो होनी ही चाहिए। 

पूरा मामला यह भी बताता है कि संचार के इस युग में हमें अपनी कई चीजें बदलनी होंगी। हम अपने सैनिकों को हथियार चलाने, दुश्मन से लड़ने और उसकी चालों से बचने का पूरा प्रशिक्षण देते हैं। अब उन चालों से बचने का प्रशिक्षण देना भी जरूरी है, जो सोशल मीडिया पर चली जाती हैं। सैनिक अपने निजी जीवन में दूसरे नागरिकों की तरह ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं। वे सैनिक, जो अपने घर से बहुत दूर लंबे समय तक सीमा या किसी भी तरह के खतरनाक क्षेत्र में तैनात होते हैं, उनके लिए संचार सुविधाएं और सोशल मीडिया अपने परिवार से संपर्क बनाए रखने का एक अच्छा माध्यम हैं। सोशल मीडिया पर उनकी उपस्थिति का दुश्मन किसी भी तरह से गलत फायदा न उठाए, इसे सुनिश्चित करना जरूरी है और यह सेना के प्रबंधन तंत्र की महती जिम्मेदारी भी। सैनिकों और अधिकारियों के प्रशिक्षण में कुछ नए अध्याय जोड़ने का वक्त आ गया है।

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