By: D.K Chaudhary
अरुण मारवाह ग्रुप कैप्टन स्तर के बड़े अधिकारी थे। हमें पता नहीं है कि सेना की सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जानकारियों तक किस स्तर के अधिकारियों की पहुंच होती है। लेकिन यह उम्मीद तो की ही जाती है कि ऐसे दस्तावेजों की सुरक्षा के कई तरह की अतिरिक्त सतर्कता बरती जाती होगी। साथ ही जिन अधिकारियों की ऐसे दस्तावेजों तक पहुंच होती है, उन पर भी खास नजर रखी जाती होगी। उसके बाद भी अगर यह सब हो रहा है, तो सुरक्षा कवच में कहीं ढील या कोई झोल बचा रह गया है। खबरों में यह भी बताया गया है कि अरुण मारवाह जिस स्तर के अधिकारी थे, उन्हें मुख्यालय में स्मार्टफोन साथ ले जाने की इजाजत थी। आज के दौर में स्मार्टफोन पर पूरी पाबंदी शायद मुमकिन न हो, लेकिन ऐसे में, नेटवर्क पर गतिविधियों की विशेष निगरानी तो होनी ही चाहिए।
पूरा मामला यह भी बताता है कि संचार के इस युग में हमें अपनी कई चीजें बदलनी होंगी। हम अपने सैनिकों को हथियार चलाने, दुश्मन से लड़ने और उसकी चालों से बचने का पूरा प्रशिक्षण देते हैं। अब उन चालों से बचने का प्रशिक्षण देना भी जरूरी है, जो सोशल मीडिया पर चली जाती हैं। सैनिक अपने निजी जीवन में दूसरे नागरिकों की तरह ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं। वे सैनिक, जो अपने घर से बहुत दूर लंबे समय तक सीमा या किसी भी तरह के खतरनाक क्षेत्र में तैनात होते हैं, उनके लिए संचार सुविधाएं और सोशल मीडिया अपने परिवार से संपर्क बनाए रखने का एक अच्छा माध्यम हैं। सोशल मीडिया पर उनकी उपस्थिति का दुश्मन किसी भी तरह से गलत फायदा न उठाए, इसे सुनिश्चित करना जरूरी है और यह सेना के प्रबंधन तंत्र की महती जिम्मेदारी भी। सैनिकों और अधिकारियों के प्रशिक्षण में कुछ नए अध्याय जोड़ने का वक्त आ गया है।