जवाब कौन देगा? (Editorial Page) 24th Dec 2017

By: D.K Chaudhary

टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले पर अदालत के फैसले ने करोड़ों देशवासियों को अचम्भे में डाल दिया है। यूपीए सरकार के इस चर्चित घोटाले में शामिल सभी आरोपियों को विशेष सीबीआई अदालत ने बरी कर दिया है। यह कहते हुए कि अभियोजन पक्ष पर्याप्त सबूत पेश कर पाने में विफल रहा है। आठ साल पहले सीबीआई ने २जी स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियमितताओं को लेकर मामला दर्ज कराया था। मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा।

कैग ने अपनी रिपोर्ट में १.७६ लाख करोड़ रुपए के नुकसान की बात कही। मामले ने जब राजनीतिक तूल पकड़ा तो तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा को अपना पद छोडऩा पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए विशेष अदालत के गठन के आदेश दिए। बाद में ए. राजा गिरफ्तार हुए और मामले की चार्जशीट दाखिल की गई। ए. राजा और द्रमुक सांसद कणिमोझी के साथ अनेक उद्योगपतियों को भी मामले में सहअभियुक्त बनाया गया। फरवरी २०१२ में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की तरफ से आवंटित सभी १२२ लाइसेंस निरस्त कर दिए।

ये मुद्दा २०१४ के लोकसभा चुनाव में जोर-शोर से छाया रहा। इसका नतीजा देश ने भी देखा और मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को लोकसभा चुनाव में करारी पराजय का सामना करना पड़ा। फैसले के बाद अब सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब देश की शीर्ष अदालत ने स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियमितता मानते हुए लाइसेंस रद्द कर दिए थे तो सभी आरोपी बरी कैसे हुए? अनियमितताएं हुई थीं तो आखिर वो किसने कीं? घोटाला इतना बड़ा था, फिर भी पर्याप्त सबूत अदालत के समक्ष प्रस्तुत क्यों नहीं किए गए? सबूतों को अदालत तक किसने नहीं पहुंचने दिया?

देश इन सभी सवालों का जवाब जानना चाहता है। यह फैसला भारतीय जनता पार्टी के लिए किसी करारे झटके से कम नहीं माना जा सकता। पिछले लोकसभा चुनाव में उसने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जिस तरह घेरा था, वह निशाना अब चूका हुआ लग रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि भी धूमिल करने की कोशिश की गई थी। अदालत के फैसले से सिंह की छवि भी निखरकर सामने आई है। केन्द्र की भाजपा सरकार अब क्या रणनीति अपनाएगी और विपक्ष के तीखे आरोपों का जवाब किस तरह देगी

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