चुनाव में शरीफ Editorial page 23rd July 2018

By: D.K Chaudhary
लाहौर के अल्लामा इकबाल इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर जब पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनकी बेटी मरियम को गिरफ्तार किया गया तो दोनों चुप थे। लाहौर के लिए निकलने से पहले शरीफ ने अपने समर्थकों से कहा कि जो उनके बस में था, वह उन्होंने कर दिया है। वे चाहते तो बड़े आराम से देश से बाहर रह सकते थे, पाकिस्तान के कई नेता ऐसा कर भी चुके हैं, लेकिन उन्होंने वापसी का रास्ता चुना। इसी महीने के आखिरी हफ्ते में पाकिस्तान में चुनाव होने जा रहे हैं और वहां के राजनीतिक हलकों में उनकी चुप्पी को लेकर गुणा-गणित जारी है। माना जा रहा है कि जिस तरह से बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद अवाम की सहानुभूति वोटों की शक्ल लेकर उनकी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की झोली में गिरी, उसी तरह नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल (एन) को भी इस गिरफ्तारी से बड़ा चुनावी फायदा मिल सकता है। चुनाव से पूर्व वहां हुए कई सर्वे में भी यह पार्टी ही आगे दिख रही है, हालांकि इसे टक्कर देने का काम मशहूर क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ कर रही है, जो लगभग सभी सर्वे में दूसरे नंबर पर है। जेल जाकर नवाज शरीफ ने सैन्य शासन के खिलाफ डटे रहने का भी संदेश दिया है। दूसरी तरफ पाकिस्तानी राजनीति में हमेशा साये की तरह डोलने वाली वहां की फौज भी इसे चुनौती की ही तरह ले रही है। 

नवाज की गिरफ्तारी से पहले पूरे पाकिस्तान में पीएमएल (एन) के सैकड़ों कार्यकर्ता गिरफ्तार किए गए। चुनाव में खड़े कई उम्मीदवारों ने आरोप लगाया है कि खुफिया अधिकारी उनसे उम्मीदवारी वापस लेने का चौतरफा दबाव बना रहे हैं। नवाज की वापसी ने उनकी पार्टी में नई जान फूंकी है जबकि अपने भाषणों में भारत का विरोध करते हुए इमरान खान भी नवाज से पीछे नहीं रहना चाहते। पीछे तो इस चुनाव में आतंकी संगठनों के साथ सांठगांठ रखने वाली धार्मिक पार्टियां भी नहीं रहना चाहतीं, जिन्होंने इस बार सबसे ज्यादा 470 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। इसका एक पहलू बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वा की चुनावी रैलियों में हुए विस्फोटों के रूप में भी दिखा, जिनमें 137 लोगों की जान चली गई। जाहिर है, पाकिस्तान में लोकतंत्र आज भी एक मुलायम बिरवा ही है, जिसे मौका पाकर कोई भी चर सकता है। 

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