By: D.K. Chaudhary
इतना ही नहीं, जिस पार्टी को यह बॉन्ड चंदे के रूप में मिलेगा, उसे चुनाव आयोग को बताना होगा कि इतनी रकम उसने बॉन्ड के जरिए हासिल की। यानी किस व्यक्ति या कंपनी ने किस पार्टी को कितनी राशि बॉन्ड के जरिए दी, इस एक सवाल को छोड़कर बाकी सारी बातें रेकॉर्ड पर उपलब्ध रहेंगी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मूलत: काले धन से चलने वाली राजनीति के लिए यह एक ऐसा रास्ता खोला गया है, जिसमें पैसे का स्रोत अनजान नहीं रह जाता। निश्चित रूप से चुनावी राजनीति को साफ करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
इससे पहले राजनीतिक दलों की कैश में चंदा लेने की ऊपरी सीमा 20,000 रुपये से घटा कर 2000 रुपये की जा चुकी है। पिछले कदम से जहां कैश में चंदा लेना पहले के मुकाबले मुश्किल हो गया था, वहीं ताजा कदम से वाइट में पैसे देने की एक सुरक्षित राह बन गई है। देखना यह है कि इस सुरक्षित राह का चयन कितने चंदा देने वाले और राजनीतिक दल करते हैं। इस कदम का स्वागत करते हुए भी यह मानना होगा कि राजनीति में भ्रष्टाचार की मुख्य समस्या से इसका सीधे तौर पर कोई लेना-देना नहीं है।
उसके लिए जिन दो अहम कदमों की जरूरत है वे हैं- एक, राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाना, और दो, चुनाव में खर्च पर सख्ती से लगाम लगाना। जब तक राजनीतिक दल इन दोनों कदमों के लिए तैयार नहीं होते, या उन्हें इसके लिए मजबूर नहीं किया जाता, तब तक चुनावी बॉन्ड जैसे कदम थोड़ा-बहुत माहौल भले बनाएं, स्वच्छ राजनीति की जमीन तैयार करना इनके बूते से बाहर ही रहेगा।