By: D.K Chaudhary
राजनीतिक गरमागरमी यहीं तक सीमित नहीं रही। यूपीए सरकार से पहले के आबंटनों पर भी सवाल उठे। दो साल बाद, एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने 1993 से आबंटित 218 खदानों में से 214 के आबंटन रद्द कर दिए। फिर, सर्वोच्च अदालत ने कोयला घोटाले से संबंधित मामलों के लिए विशेष अदालत गठित कर दी। मनमाने ढंग से कोयला खदानें निजी कंपनियों को आबंटित कर कुछ राजनीतिकों और कुछ नौकरशाहों के मालामाल होने के किस्से झारखंड में ही नहीं, भरपूर खनिज संपदा वाले अन्य राज्यों में भी मिल जाएंगे। ओड़िशा और गोवा के ऐसे मामलों की जांच न्यायमूर्ति शाह आयोग ने की थी और बड़े पैमाने पर अनियमितता पाई थी। क्या उन मामलों में भी अदालती फैसला आ सकेगा, जैसा बुधवार को सीबीआइ की विशेष अदालत का आया!