घपले की कालिख (Editorial Page) 16th Dec 2017

By: D.K Chaudhary

सत्ता में रहते हुए पद के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के आरोप राजनीतिकों पर लगते रहे हैं। लेकिन कभी-कभार ही किसी मामले की जांच या न्यायिक कार्यवाही परिणति तक पहुंच पाती है। इस लिहाज से कोयला घोटाले के एक मामले में बुधवार को आया सीबीआइ की विशेष अदालत का फैसला एक विरल घटना है। अदालत ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, पूर्व केंद्रीय कोयला सचिव एचसी गुप्ता और झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव अशोक कुमार बसु को आपराधिक साजिश रचने और भ्रष्टाचार का दोषी करार दिया है। इसके अलावा, अदालत ने कोलकाता की कंपनी विनी आयरन ऐंड स्टील इंडस्ट्री लिमिटेड को भी दोषी ठहराया है। अलबत्ता अभी अदालत ने सजा नहीं सुनाई है। कोयला घोटाले से जुड़े मामलों में यह चौथा है जिसमें सजा सुनाई गई है। इससे पहले के मामलों की तरह, अदालत के फैसले ने इस मामले में भी बड़े स्तर के भ्रष्टाचार के पीछे राजनीति, नौकरशाही और उद्योग-कारोबार, तीनों के भ्रष्ट तत्त्वों के गठजोड़ की तरफ इशारा किया है। तमाम घोटालों की यही हकीकत है। लेकिन कोयला घोटाला एक और सच्चाई को बयान करता है। उदारीकरण केदौर में भ्रष्टाचार के बहुत सारे मामले प्राकृतिक संसाधनों के आबंटन और दोहन से जुड़े रहे हैं। इसीलिए यह सिर्फ संयोग नहीं है कि इस सिलसिले में प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न राज्यों के मंत्रियों, यहां तक कि मुख्यमंत्री के भी नाम सामने आए।

राजनीतिक गरमागरमी यहीं तक सीमित नहीं रही। यूपीए सरकार से पहले के आबंटनों पर भी सवाल उठे। दो साल बाद, एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने 1993 से आबंटित 218 खदानों में से 214 के आबंटन रद्द कर दिए। फिर, सर्वोच्च अदालत ने कोयला घोटाले से संबंधित मामलों के लिए विशेष अदालत गठित कर दी। मनमाने ढंग से कोयला खदानें निजी कंपनियों को आबंटित कर कुछ राजनीतिकों और कुछ नौकरशाहों के मालामाल होने के किस्से झारखंड में ही नहीं, भरपूर खनिज संपदा वाले अन्य राज्यों में भी मिल जाएंगे। ओड़िशा और गोवा के ऐसे मामलों की जांच न्यायमूर्ति शाह आयोग ने की थी और बड़े पैमाने पर अनियमितता पाई थी। क्या उन मामलों में भी अदालती फैसला आ सकेगा, जैसा बुधवार को सीबीआइ की विशेष अदालत का आया!

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