ग्रे लिस्ट में पाकिस्तान (Editorial Page) 28th Fab 2018

By: D.K Chaudhary

पैरिस में शुक्रवार को फाइनैंशल ऐक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की मीटिंग हुई जिसमें पाकिस्तान को फिर से ‘ग्रे लिस्ट’ वाले देशों में शामिल करने का फैसला लिया गया। इसका औपचारिक ऐलान अभी बाकी है। एफएटीएफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग पर नजर रखने वाली संस्था है। इसके पहले 2012 से 2015 तक पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखा गया था। इस फैसले से दुनिया में एक बड़ा संदेश भी गया है कि कुछेक राष्ट्रों में कूटनीतिक दृष्टिकोण से ज्यादातर मुद्दों पर सहमति न हो तब भी आतंकवाद के खिलाफ वे एक साथ आ सकते हैं। एफएटीएफ के 39 सदस्य देशों में से तुर्की को छोड़कर बाकी सभी ने अमेरिका की ओर से पाकिस्तान के खिलाफ पेश किए गए प्रस्ताव का समर्थन किया। इसमें अर्से बाद चीन द्वारा आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ छोड़ना भारत के लिए उम्मीद बंधाने वाली बात है।

बहरहाल, इस आधार पर ज्यादा खुशफहमी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में शामिल करने के प्रस्ताव को समर्थन देने के अलावा चीन के पास कोई चारा भी नहीं था। चीन खुद भी अपने शिनच्यांग प्रांत में आतंकवाद का भुक्तभोगी है। अभी वह इस मुद्दे पर विश्व बिरादरी से अलग खड़ा होता है तो कल किसी भयानक घटना के समय उसका साथ देने कोई आगे नहीं आएगा। वैसे, पाकिस्तान को अपना भाई मानने के रवैये पर चीन आज भी कायम है और इसकी वजह सिर्फ चीन-पाक आर्थिक गलियारे का निवेश और ‘वन बेल्ट वन रोड’ की उसकी वृहद योजना नहीं है। ‘ग्रे लिस्ट’ देशों में शामिल होने के बाद पाकिस्तान से होने वाली हर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था और बिगड़ सकती है। दुनिया भर की बड़ी कंपनियां पाकिस्तान में निवेश करने से बचेंगी। आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक भी उसे लोन देने से बचना चाहेंगे। पाकिस्तान के कारोबारियों पर भी इसका असर पड़ेगा और वे अपने राजनेताओं पर रवैया बदलने के लिए दबाव डाल सकते हैं। पिछले महीने ही अमेरिका ने उसे दी जाने वाली करोड़ों डॉलर की सैन्य सहायता रोक दी। दबाव पड़ने पर वह अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों के खिलाफ सख्त रुख अपनाता है, लेकिन भारत को निशाना बनाना जारी रखता है। यह रवैया बदलने तक उस पर दबाव बनाए रखना चाहिए।

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