By: D.K Chaudhary
बहरहाल, इस आधार पर ज्यादा खुशफहमी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में शामिल करने के प्रस्ताव को समर्थन देने के अलावा चीन के पास कोई चारा भी नहीं था। चीन खुद भी अपने शिनच्यांग प्रांत में आतंकवाद का भुक्तभोगी है। अभी वह इस मुद्दे पर विश्व बिरादरी से अलग खड़ा होता है तो कल किसी भयानक घटना के समय उसका साथ देने कोई आगे नहीं आएगा। वैसे, पाकिस्तान को अपना भाई मानने के रवैये पर चीन आज भी कायम है और इसकी वजह सिर्फ चीन-पाक आर्थिक गलियारे का निवेश और ‘वन बेल्ट वन रोड’ की उसकी वृहद योजना नहीं है। ‘ग्रे लिस्ट’ देशों में शामिल होने के बाद पाकिस्तान से होने वाली हर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था और बिगड़ सकती है। दुनिया भर की बड़ी कंपनियां पाकिस्तान में निवेश करने से बचेंगी। आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक भी उसे लोन देने से बचना चाहेंगे। पाकिस्तान के कारोबारियों पर भी इसका असर पड़ेगा और वे अपने राजनेताओं पर रवैया बदलने के लिए दबाव डाल सकते हैं। पिछले महीने ही अमेरिका ने उसे दी जाने वाली करोड़ों डॉलर की सैन्य सहायता रोक दी। दबाव पड़ने पर वह अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों के खिलाफ सख्त रुख अपनाता है, लेकिन भारत को निशाना बनाना जारी रखता है। यह रवैया बदलने तक उस पर दबाव बनाए रखना चाहिए।