हालांकि इस मामले में महाविद्यालय प्रशासन ने अध्यापक-अभिभावक संघ के हस्तक्षेप के बाद तुरंत प्रभाव से प्राध्यापक को निलंबित करने की तैयारी कर ली है लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर हमारे शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने वाले ऐसे अध्यापकों को सिर्फ सस्पेंड ही क्यों किया जाता है? क्यों नहीं ऐसी गंदी नजर रखने वालों को ताउम्र के लिए अध्यापन जैसे पवित्र पेशे से बाहर का रास्ता दिखाया जाता? सरकार व शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह इस पवित्र पेशे की गरिमा को बचाए रखने के लिए आगे आए और जिस भी अध्यापक या अध्यापिका के खिलाफ किसी भी छात्र-छात्र से अश्लील हरकतें करने या फिर अश्लीलता के लिए उकसाने की शिकायत आती है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे और तुरंत प्रभाव से उसे पेशे से ही बाहर करे।