सभी प्रदेशों की सरकारों ने इस वजह से होने वाली मौतों का जो आंकड़ा केंद्र सरकार को भेजा है, वह बताता है कि साल 2017 में इन गड्ढों ने कुल 3,597 लोगों को स्वर्गवासी बना दिया। वर्ष 2016 में इस वजह से 2,324 लोगों की मौत हुई थी। साल दर साल बढ़ता यह तकलीफदेह आंकड़ा बताता है कि किसी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वरना वजह क्या है कि वर्ष 2013 से ही सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टिट्यूट ने तीन मिनट में गड्ढा भरने वाली जो मशीन बना रखी है, वह अभी तक इस काम के लिए जिम्मेदार लोगों की पहुंच में ही नहीं आ सकी है।
इसका एक उत्तर भ्रष्टाचार हो सकता है, जिससे अपने यहां की सड़कें तो क्या कोना-कोना भरा पड़ा है। मोटर वीइकल ऐक्ट में संशोधन के लिए प्रस्तावित विधेयक में गड्ढों के लिए जिम्मेदार लोगों पर मुकदमा दर्ज करने का प्रावधान है, पर वह भी इन गड्ढों की ही तरह लंबे समय से संसद में लंबित है।