By: D.K Chaudhary
टीडीपी का मामला अभी इसके ठीक उलट है, लेकिन राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने के सवाल पर दोनों पक्षों का जैसा रुख बन गया है, उसे देखते हुए दूरी पटने के आसार कम ही दिख रहे हैं। वैसे इन दोनों के बीच बदलते राजनीतिक समीकरण का तीसरा अहम कोण जगनमोहन रेड्डी की अगुआई वाली वाईएसआर कांग्रेस है, जिसके चलते टीडीपी और बीजेपी न साथ रह पा रहे हैं, न अलग हो पा रहे हैं। यह पार्टी नए आंध्र प्रदेश में टीडीपी की मुख्य प्रतिद्वंद्वी है। जगनमोहन ने कुछ ही दिनों पहले यह कह कर टीडीपी नेतृत्व पर दबाव बढ़ा दिया कि अगर केंद्र सरकार ने राज्य को विशेष दर्जा देने पर अनुकूल फैसला नहीं किया तो मौजूदा सत्र के अंत में उनके सारे सांसद इस्तीफा दे देंगे। जाहिर है, वाईएसआर कांग्रेस की इस घोषणा के बाद टीडीपी पर कड़ा स्टैंड लेने का दबाव बहुत बढ़ गया था। उसके एनडीए सरकार छोड़ने के फैसले के पीछे इस दबाव की साफ भूमिका देखी जा सकती है। लेकिन अगर टीडीपी अगले चुनावों में बीजेपी का साथ छोड़ देती है तो बहुत संभव है कि बीजेपी जगनमोहन को अपने साथ ले ले। ऐसा होने पर चंद्रबाबू के लिए चुनाव की वैतरणी पार करना मुश्किल हो सकता है। ऐसी
टेढ़ी स्थिति में सारे पक्ष संतुलन बनाकर ही आगे बढ़ेंगे। लेकिन बीजेपी के लिए इसमें खास चिंता की बात इसलिए है क्योंकि 25 लोकसभा सीटें इस रस्साकशी में दांव पर लगी हैं। याद रहे, पूर्वोत्तर की जो जीत अभी पार्टी के बढ़े मनोबल की बुनियाद बनी हुई है, उसके सातों राज्यों की कुल सीटें मिलाकर भी 25 ही निकलती हैं।