By: D.K Chaudhary
एक परिपक्व लोकतंत्र सामाजिक विकास के मकसद से तय संवैधानिक नियम-कायदों से चलता है।
अगर संविधान के तहत नागरिकों को कोई अधिकार हासिल है तो स्थानीय स्तर पर गठित कोई सामाजिक समूह या पंचायतें उसे बाधित नहीं कर सकतीं। यों भी, सामाजिक व्यवस्था को सुचारु तरीके से चलाने का दावा करने वाले किसी संगठन या संस्था की गतिविधियां एक प्रगतिशील और सभ्य समाज बनाने को लक्षित होनी चाहिए, न कि किसी जड़ परंपरा को बनाए रखने की खातिर अमानवीयता की हद तक जाने के लिए। विडंबना यह है कि समाज में जिस तरह के प्रेम संबंधों और विवाहों को जातिगत विद्वेष या इससे जुड़ी समस्याओं और जड़ता का सामना करने का सबसे कारगर उपाय माना जाता है, उनके खिलाफ खाप पंचायतें कई बार आपराधिक स्तर तक सक्रिय हो जाती हैं। मगर विकासमान समाज के लिए जरूरी शिक्षा, सेहत या रोजगार जैसे मुद्दों पर विचार करना उन्हें कभी जरूरी नहीं लगता। प्रेम और अंतरजातीय विवाह एक सभ्य और संवेदनशील समाज के निर्माण में सहायक साबित हो सकते हैं। इसलिए जरूरत है कि इसमें गैरकानूनी तरीके से दखल देने वाले समूहों पर लगाम लगाने की व्यवस्था हो।