खापों पर शिकंजा (Editorial page) 30th March 2018

By: D.K Chaudhary

अब खाप पंचायतों की मनमानी पर लगाम लग सकेगी। एक खाप के ‘फैसले’ के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर दिए चौवन पेज के फैसले में सर्वोच्च अदालत ने साफ कहा कि दो बालिगों की मर्जी से की गई शादी में खाप पंचायत या किसी भी पक्ष का दखल गैरकानूनी है।

दूसरी जाति या धर्म में दो बालिगों की शादी को लेकर सर्वोच्च अदालत ने जो फैसला सुनाया है, वह ऐतिहासिक है। यह फैसला इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि अब खाप पंचायतों की मनमानी पर लगाम लग सकेगी। एक खाप के ‘फैसले’ के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर दिए चौवन पेज के फैसले में सर्वोच्च अदालत ने साफ कहा कि दो बालिगों की मर्जी से की गई शादी में खाप पंचायत या किसी भी पक्ष का दखल गैरकानूनी है। इस मामले में न माता-पिता, न समाज और न ही कोई पंचायत दखल दे सकती है। अगर ऐसी शादी में कहीं कुछ गलत नजर आता है तो इसका फैसला करना कानून और अदालत का काम है, न कि किसी और का। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय पीठ ने खाप पंचायतों को साफ-साफ चेताया है कि वे कानून हाथ में न लें और समाज की ठेकेदार न बनें। अदालत ने आन के नाम पर की जाने वाली हत्याओं (ऑनर किलिंग) को रोकने के लिए कानून बनाने की सिफारिश की है। जब तक कानून नहीं बन जाता तब तक अदालत के दिशा-निर्देश लागू रहेंगे, जिन्हें छह हफ्ते के भीतर लागू किया जाना है। अदालत ने सुधारात्मक उपाय और रोकथाम के कदम भी सुझाए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि इनसे ऑनर किलिंग जैसी सामाजिक बुराई को रोकने में मदद मिल सकेगी।

सर्वोच्च अदालत का यह फैसला व्यक्ति की पसंद, उसकी आजादी और आत्मसम्मान को रेखांकित करता है। किसी की पसंद को सम्मान या आन के नाम पर कुचलने और उसे शारीरिक-मानसिक रूप से प्रताड़ित करने वाली घटनाएं समाज के लिए कलंक हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि 2014 से 2016 के दौरान आन के नाम पर हत्या की दो सौ अट्ठासी वारदातें हुर्इं। बेतुके और बर्बर फैसले सुनाते वक्त खाप पंचायतें भूल जाती हैं कि उनसे ऊपर कानून की भी सत्ता है। एक जाति या गोत्र में शादी, प्रेम संबंध, अवैध संबंध, जमीनी विवाद जैसे मसलों पर कई बार खापों के फैसले सुन कर हैरत होती है। मसलन, मुंह काला करना, गांव में निर्वस्त्र घुमाना, पति-पत्नी को भाई-बहन घोषित कर देना, पीट-पीट कर मार डालना, ऐसा आर्थिक दंड लगाना जिसे भर पाना ही संभव न हो, सामाजिक बहिष्कार, जाति बाहर कर देना, गांव छोड़ने का हुक्म दे देना, आदि। इसलिए खापों की इस गैरकानूनी और मनमर्जी वाली व्यवस्था पर लगाम क्यों नहीं लगनी चाहिए? सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू कराना सरकार की जिम्मेदारी है। अदालत ने साफ कहा है कि दूसरी जाति या धर्म में शादी करने वाले बालिगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस और प्रशासन की है।

अगर सर्वोच्च अदालत के दिशा-निर्देशों पर अमल नहीं होता है तो संबंधित अधिकारियों को खमियाजा भुगतना होगा। लेकिन सवाल है कि खापों से प्रशासन निपटेगा कैसे? यह एक बड़ी चुनौती है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में कई खापों ने दहेज, शादी-विवाह में फिजूलखर्ची और कन्याभ्रूण हत्या जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ मुखर पहल की है। अगर खापें ऐसे ही सकारात्मक कदम ऑनर किलिंग जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए भी उठाएं, तो इससे समाज में बड़ा बदलाव आ सकता है। यह कोई मुश्किल काम नहीं है। लेकिन समस्या यह है कि खापों को राजनीतिकों का पूरा संरक्षण रहता है। कोई भी नेता अपनी जाति की खाप के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत नहीं दिखा पाता है, क्योंकि उसे वोट खिसकने का डर सताता है। ऐसे में सरकार और प्रशासन की पहल के साथ-साथ खापों और इन्हें संरक्षण देने वाले राजनीतिकों को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है!

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