By: D.K Chaudhary
मोदी सरकार के कार्यकाल के चार वर्ष पूरे होने पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपने मंत्रालय की उपलब्धियां गिनाते हुए पाकिस्तान से बातचीत के सवाल पर यह स्पष्ट करके बिल्कुल सही किया कि जब सीमा पर जनाजे उठ रहे हों, तब वार्ता का कोई औचित्य नहीं बनता। पाकिस्तान को यह दो-टूक संदेश देना इसलिए आवश्यक था, क्योंकि पिछले कुछ समय से उसकी ओर से यह संकेत दिया जा रहा है कि वह भारत से बातचीत को तैयार है। चूंकि यह संकेत खुद पाकिस्तानी सेना प्रमुख के हवाले से दिया गया, इसलिए यह रेखांकित करना और भी जरूरी था कि भारत इसकी अनदेखी करने को तैयार नहीं कि सीमा पर उत्पात मचाने के साथ कश्मीर में किस तरह आतंकियों की घुसपैठ कराई जा रही है।
आखिर पाकिस्तान यह सोच भी कैसे सकता है कि उसकी ओर से आतंकियों की खेप भेजने के बाद भी भारत उससे बातचीत के लिए तैयार हो जाएगा? कहीं वह विदेश नीति के उन भारतीय विशेषज्ञों से तो उत्साहित नहीं हुआ, जो उससे बातचीत की जरूरत जताने के साथ यह भी सलाह दे रहे हैं कि भारत को पाकिस्तानी सेना प्रमुख को नई दिल्ली आमंत्रित करना चाहिए? इन विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अगर भारत ऐसा करे तो पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष दौड़े चले आएंगे। यह सही है कि पाकिस्तान से जो भी समस्याएं हैं, उनका समाधान बातचीत से ही निकलेगा, लेकिन जब तक इसके ठोस संकेत नहीं मिल जाते कि पाकिस्तान वार्ता के जरिए समस्याओं का हल खोजने के लिए तैयार है, तब तक उससे संवाद करना उसके छल की अनदेखी करना और उसके हाथों एक बार फिर धोखा खाने का जोखिम उठाना है। यह जोखिम उठाने की कहीं कोई जरूरत नहीं, क्योंकि अभी तक का अनुभव यही कहता है कि पाकिस्तान भरोसे का खून करने में माहिर है।
मोदी सरकार ने बीते चार सालों में कम से कम तीन बार पाकिस्तान की धोखेबाजी को भुलाकर आगे बढ़ने की कोशिश की, लेकिन उसने हर बार पीठ में खंजर भोंकने का काम किया। गुरुदासपुर, पठानकोट और उरी में भीषण आतंकी हमले पाकिस्तान की धोखेबाजी के ऐसे उदाहरण हैं, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। पाकिस्तान ने गुरदासपुर और पठानकोट में हुए आतंकी हमलों की जांच में भी कपट किया, ठीक वैसे ही जैसे उसने मुंबई हमले की जांच में किया। वह अभी भी मुंबई के गुनहगारों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई करने के बजाय बहाने बनाने में लगा हुआ है। पहले उसका बहाना यह था कि भारत सारे सुबूत उपलब्ध नहीं करा रहा है। अब वह यह कह रहा है कि अजमल कसाब को फांसी देने के बाद उसके लिए आगे बढ़ना मुश्किल हो रहा है। यह बहानेबाजी की पराकाष्ठा ही है कि पाकिस्तानी सेना पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के उस बयान को भी झूठा साबित करने पर तुली है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुंबई में हमला करने वाले आतंकी पाकिस्तान से ही आए थे। सबसे हास्यास्पद हरकत यह है कि पाकिस्तानी सेना अपनी खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व प्रमुख असद दुर्रानी के उन बयानों को भी खारिज कर रही है जो एक किताब की शक्ल में सामने आए हैं।