By: D.K Chaudhary
करोड़ों की गाड़ियां, लाखों की घड़ियां और पेन, बिटकॉइन जैसी आभासी मुद्रा में लगा हुआ पैसा क्या किसी पिछड़े देश में कोई रोजगार पैदा करता है? ऑक्सफैम की रपट को एक अर्थ में उदारीकरण और भूमंडलीकरण पर की गई टिप्पणी भी माना जा सकता है। दुनिया में पूंजी के अबाध प्रवाह के बावजूद फायदा उन्हीं के हिस्से गया, जो पहले से समृद्ध थे। नई व्यवस्था में सरकारों का रोल घट जाने से राजनीति भी गरीबों के पक्ष में नीतियां बनाने के बजाय उन्हें भरमाने पर केंद्रित हो गई है। मनरेगा जैसी कुछ गरीब समर्थक नीतियां बनीं भी तो उनका जोर कमजोर वर्ग को उत्पादन प्रक्रिया का हिस्सा बनाने की बजाय उन्हें किसी तरह जीवित रखने पर रहा। बहरहाल, असमानता के मुद्दे को टालते जाने की भी सीमा है। कहीं ऐसा न हो कि दुनिया ऐसी अराजकता की शिकार हो जाए, जिससे उबरने की कल्पना भी मुश्किल लगने लगे।