By: D.K Chaudhary
देश भर के किसानों के 68 संगठनों का दिल्ली कूच साबित करता है कि किसानों की समस्याओं के समाधान की दिशा में दरअसल अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ, जो उन्हें लंबे समय के लिए आश्वस्त कर सके। दिल्ली कूच तो इनका प्रतीकात्मक प्रयास है, असल योजना अपने-अपने राज्यों में सक्रिय विरोध प्रदर्शन की है, ताकि उनकी आवाज दूर तक जा सके। उन्हें भले ही सीमाएं बांधकर दिल्ली पहुंचने से रोक दिया गया हो, लेकिन यह सवाल तो फिर से गूंज ही गया है कि किसानों को हल-बैल-ट्रैक्टर छोड़ दिल्ली का रुख करना क्यों पड़ा? किसान कर्ज माफी के साथ एम एस स्वामीनाथन आयोग की वह रिपोर्ट भी लागू करवाना चाहते हैं, जिसे किसानों की दशा सुधारने के लिए कारगर सुझाव देने थे। माना गया था कि यह एक युगांतरकारी कदम होगा। केंद्र सरकार ने साल 2004 में किसानों की दशा सुधारने और खाद्यान्न के मामले में आपूर्ति की कड़ी भरोसेमंद बनाने के लिए जाने माने अर्थशास्त्री एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स का गठन किया था। आयोग ने साल 2006 में अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें किसानों के तेज और समग्र आर्थिक विकास के उपाय सुझाए गए। सवाल है कि किसानों की रीढ़ मजबूत करने वाली इतनी महत्वाकांक्षी सिफारिशों की आखिर अब तक अनदेखी क्यों होती रही है?
इसमें शक नहीं कि हमारा किसान लंबे समय से तमाम तरह के संकटों से जूझता रहा है, लेकिन उसकी समस्याओं के स्थाई समाधान में कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। महाराष्ट्र से लेकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु तक उनकी समस्याएं कमोबेश समान हैं। एक जमाने में भले ही विदर्भ किसानों की आत्महत्या के लिए सुर्खियों में रहा हो, बाद के दिनों में तो कोई भी राज्य इस क्रूर सच से बच नहीं सका। हमारी कृषि विकास दर यूं भी कम रही है। किसान की आमदनी जरूरत और अपेक्षा से भी कहीं कम है। वह सूखे का शिकार होता है, बाढ़ का भी। फसल का उचित दाम न पाने को तो वह अभिशप्त ही है। बिचौलियों का तंत्र उसे इन अभिशाप से निकलने नहीं देता। ऐसे में, अगर वह कोई दूरगामी और स्थायित्व वाली योजना की मांग करता है, तो गलत क्या है? लेकिन सच यही है कि जब भी उसने आवाज उठाई, उसे समाधान तो नहीं मिला, व्यवस्था का कोपभाजन जरूर बनना पड़ा।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों में किसानों को उत्पादन मूल्य का पचास प्रतिशत से ज्यादा दाम देने और उन्नत किस्म के बीज कम दामों में उपलब्ध कराने की बात है। यह किसानों को प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए जोखिम फंड बनाने की वकालत करती है। यह चाहती है कि फसल बीमा योजना पूरे देश में और हर फसल के लिए तो मिले ही, खेती के लिए कर्ज की ऐसी व्यवस्था हो, जो गरीब से गरीब किसान तक आसानी से पहुंचे। यह कर्ज वसूली में हालात के अनुरूप राहत की बात भी करती है। ऐसा भी नहीं है कि किसानों की समस्याओं पर आज तक कुछ हुआ ही नहीं। बहुत कुछ है, जो हुआ और इन सिफारिशों के आसपास भी होगा। लेकिन असल जरूरत किसानों की समस्याओं के प्रति संजीदा और उनका समाधान करने के प्रति सचेष्ट दिखने की है। उनके साथ बैठकर उनकी बातें संजीदगी से समझने की जरूरत है। शायद यही पहल अब तक छले गए किसानों को आश्वस्त कर जाए।