कारोबार और तकरार Editorial page 28th June 2018

By: D.K Chaudhary
हमारे पास इसके सिवाय और कोई रास्ता नहीं था। अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर शुल्क में बढ़ोतरी का करारा जवाब देते हुए भारत ने भी वहां से आयात किए जाने वाले 29 सामानों पर टैक्स बढ़ाने का फैसला किया है। अपने इस कदम के जरिये भारत ने अमेरिका को यह संदेश भी दे दिया है कि किसी की धौंस में आकर हम अपने आर्थिक हितों से समझौता नहीं कर सकते। 
अमेरिका ने मार्च से ही कई देशों के उत्पादों के आयात पर शुल्क बढ़ाना शुरू कर दिया था, जिसका दुनिया भर में विरोध हो रहा है। उसने भारत के स्टील पर 25 और एल्यूमीनियम पर 10 फीसदी आयात शुल्क बढ़ा दिया है। अपने कदम को जायज ठहराते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका ऐसे मुक्त व्यापार को मंजूरी नहीं देगा, जिसमें उसे भारी नुकसान उठाना पड़े। अमेरिकी राष्ट्रपति के मुताबिक वह उस मुक्त व्यापार के समर्थक हैं, जिसमें पारदर्शी तरीके से बराबरी का कारोबार हो। पता नहीं ट्रंप की नजर में बराबरी का मतलब क्या है, पर इतना तय है कि आयात शुल्क बढ़ाने का उनका निर्णय ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति का ही एक हिस्सा है। इसके जरिए वह अपने श्रम-सघन उद्योगों को मजबूती देते हुए दिखना चाहते हैं। 

संभव है, इससे अमेरिकी इस्पात और एल्यूमीनियम उद्योग को अभी थोड़ी गति मिल जाए। लेकिन दूसरी तरफ चीन और भारत के जवाबी कदमों से अमेरिका के किसानों और मछुआरों को तगड़ा झटका भी लग सकता है। यानी अंतत: यह व्यापार युद्ध अमेरिकी काम-धंधे पर बुरा असर ही डालेगा। लेकिन ट्रंप की मुश्किल है कि वह ज्यादा दूर तक नहीं सोचते। अभी उनकी नजर तीन महीने बाद अमेरिका में होने वाले संसदीय चुनावों पर है, जिन्हें वे अपनी नारेबाजी के बल पर जीतना चाहते हैं। लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि कारोबार में सिर्फ अपना हित देखने के नतीजे बुरे ही होते हैं। आज ग्लोबलाइजेशन ने विश्व को जहां पहुंचा दिया है, वहां से पीछे लौटने में पूरी दुनिया का नुकसान है। व्यापारिक मामलों में सभी देशों को एक दूसरे के साथ तालमेल बिठाकर चलना होगा, तभी सबकी तरक्की सुनिश्चित की जा सकेगी। 

उम्मीद करें कि अमेरिका इस बात को समझेगा और बातचीत के जरिएयह गतिरोध जल्द ही सुलझा लिया जाएगा। बहरहाल, भारत को वर्तमान परिस्थिति से निपटने के लिए कुछ तैयारियां भी करनी होंगी। जैसे, भारतीय स्टील उत्पादकों को नए बाजार तलाशने होंगे और यूरोपीय संघ सहित स्टील के अन्य ताकतवर उत्पादकों से कड़े मुकाबले के लिए खुद को तैयार करना होगा। देश में स्टील, लोहे और एल्यूमीनियम की सरकारी खरीद में स्थानीय उत्पादकों को प्राथमिकता देने की नीति पहले से लागू है, लेकिन अमेरिका को होने वाला निर्यात घटने के बाद इस क्षेत्र का दमखम बनाए रखने के लिए कुछ और पहलकदमियों की जरूरत पड़ेगी।

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