संभव है, इससे अमेरिकी इस्पात और एल्यूमीनियम उद्योग को अभी थोड़ी गति मिल जाए। लेकिन दूसरी तरफ चीन और भारत के जवाबी कदमों से अमेरिका के किसानों और मछुआरों को तगड़ा झटका भी लग सकता है। यानी अंतत: यह व्यापार युद्ध अमेरिकी काम-धंधे पर बुरा असर ही डालेगा। लेकिन ट्रंप की मुश्किल है कि वह ज्यादा दूर तक नहीं सोचते। अभी उनकी नजर तीन महीने बाद अमेरिका में होने वाले संसदीय चुनावों पर है, जिन्हें वे अपनी नारेबाजी के बल पर जीतना चाहते हैं। लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि कारोबार में सिर्फ अपना हित देखने के नतीजे बुरे ही होते हैं। आज ग्लोबलाइजेशन ने विश्व को जहां पहुंचा दिया है, वहां से पीछे लौटने में पूरी दुनिया का नुकसान है। व्यापारिक मामलों में सभी देशों को एक दूसरे के साथ तालमेल बिठाकर चलना होगा, तभी सबकी तरक्की सुनिश्चित की जा सकेगी।
उम्मीद करें कि अमेरिका इस बात को समझेगा और बातचीत के जरिएयह गतिरोध जल्द ही सुलझा लिया जाएगा। बहरहाल, भारत को वर्तमान परिस्थिति से निपटने के लिए कुछ तैयारियां भी करनी होंगी। जैसे, भारतीय स्टील उत्पादकों को नए बाजार तलाशने होंगे और यूरोपीय संघ सहित स्टील के अन्य ताकतवर उत्पादकों से कड़े मुकाबले के लिए खुद को तैयार करना होगा। देश में स्टील, लोहे और एल्यूमीनियम की सरकारी खरीद में स्थानीय उत्पादकों को प्राथमिकता देने की नीति पहले से लागू है, लेकिन अमेरिका को होने वाला निर्यात घटने के बाद इस क्षेत्र का दमखम बनाए रखने के लिए कुछ और पहलकदमियों की जरूरत पड़ेगी।